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________________ १०२५ १६१४ के ग़दर में इन्होंने बहुत अच्छा प्रबंध किया, जिस पर दरबार से इनको ताजीम हाथी, कटारी इत्यादि मिली । संवत् १९१६ में आगरे में दरबार हुआ, जिसमें इन्हें जी० सी० एम० आई० का खिताब मिला । संवत् १९२३ में दरबार में महारुद्रयाग हुआ, जिसका प्रबंध आपने उत्तम किया । आप दस्तकारी में भी बढ़े चतुर थे। कविता भी आपकी सरस तथा प्रशंसनीय होती थी, आपकी गणना तोष की श्रेणी में की जाती है। उदाहरणबदन मयंक पै चकोर है रहत नित, पंकज नयन देखि भौंर लौं गयो फिरै अधर सुधारस के चाखिबे को सुमनस , पूसरी है नैनन के तारन छयो फिरै । अंग-अंग गहन अनंग को सुभट होत , बानि गान सुनि ठगे मृग लौं उयो फिरै ; तेरे रूप भूप आगे पिय को अनूप मन , धरि बहु रूप बहुरूप सो भयो फिरै ॥ १ ॥ चंद्र मिस जा को चंद्रसेखर चढ़ावें , सीस पट मिस धारै गिरा मूरति सबाब की ; चंदन के मिस चारु चर्चत अगर मार , रमा मिस हरि हिय धारै सित प्राव की। भूप रामसिंह तेरी कीरति कला की काँति , भाँति-भाँति बढ़े छबि कवि के किताब की; मित्र सुख संगकारी प्राब माहताब की त्यौं , सत्रु-मुख-रंगहारी ताब आफताब की ॥ २ ॥
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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