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________________ १०२२ मिश्रबंधु-विनोद चहकि चकोर उठे सोर करि भौंर उठे , बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सोहावने ; खिलि उठी एकै बार कलिका अपार , हिलि-हिलि उठे मारुत सुगंध सरसावने । पलक न लागी अनुरागी इन नैनन पै, . पलटि गए धौं कबै सरु मन भावने ; उमॅगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघा लगे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने । इनका कविता-काल संवत् १९०६ के इधर-उधर था। इनकी भाषा बहुत अच्छी थी। नाम- (१७८४) चंद कवि । संवत् १८६० के लगभग थे कोई-कोई इन्हें शाह जहाँगीर के समय का समझते हैं । नाम-(१७८४ ) महाराजा विश्वनाथसिंह श्राप महाराजा जयसिंह के पुत्र और महाराजा रघुराजसिंह के पिता थे। अपने पिता के पीछे आप संवत् १८६१ (सन् १८३३) में बांधव (रीवाँ )-नरेश हुए और संवत् १९११ (सन् १८४) तक राज करते रहे । ये महाराज अच्छे कवि थे और कवियों एवं विद्वानों का इन्होंने अच्छा सम्मान किया। इनकी भाषा व्रजभाषा और कविता प्रशंसनीय है। इन्होंने अनेक ग्रंथ बनोए, जिनके नाम नीचे लिखे जाते हैं (१) अष्टयाम का आह्निक, (२) आनंदरघुनंदन नाटक, (३) उत्तम काव्यप्रकाश, (४) गीता रघुनंदनशतिका, (५) रामायण, (६) गीता रघुनंदन प्रामाणिक, (७) सर्वसंग्रह, (८) कबीर के बीजक की टीका, (6) विनय पत्रिका की टीका, (१०) रामचंद्र की सवारी, (११) भजन, (१२) पदार्थ, (१३) धनुविद्या, (१४) परमतत्त्वप्रकाश, (१५) आनंदरामायण, (१६)
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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