SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८७ वर्तमान प्रकरण यह हाल संवत् १९५३ के इधर-उधर का है । इसके पूर्व सिसेंडी के राजा चंद्रशेखर के इलाके में कुछ दिन आपने जिलेदारी की थी, पर उससे आपका जी इतना ऊबा था कि उसे छोड़कर भाप भाग गए थे। गधौली से कविता सीखकर आप फिर लखनऊ में हमारे यहाँ रहने लगे। आपकी कई पुश्तों से कुछ संकल्प की भूमि ठाकुर रामेश्वरबख़्श रईस परसेहँड़ी के इलाके में चली आती है। उसी के संबंध से आप ठाकुर साहब के यहाँ जाने-आने लगे और ठाकुर साहब के भी कविता-प्रेमी होने के कारण आपका उनसे प्रेम विशेष बढ़ गया। उनकी प्रशंसा के आपने बहुत-से छंद बनाए हैं । आपके पूर्व-पुरुष ठाकुर साहब के पूर्व-पुरुषों के गुरु थे, सो ठाकुर साहब इनमें भी गरु-भाव रखते थे। इसी भाव का एक विशालाष्टक रचकर ठाकुर साहब ने इनकी बड़ी प्रशंसा की है। कुछ काम न होने से आप उस प्रांत के कुछ अन्य रईसों के यहाँ भी जाने-माने लगे। इनमें से ठाकुर दुर्गाबख्श के आपने उत्तम छंद रचे । ठाकर अनिरुद्धसिंह और दीन कवि से प्रापका विशेषतया मित्र-भाव था । विशालजी प्रकृति से कुछ आलसी भी थे, सो कोई अन्य कार्य न होने पर भी आपने कविता बहुत नहीं बनाई । आपके कई पुत्र और कन्याएँ हुई, पर दुर्भाग्य-वश उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहीं । इनके मरणकाल में एक चार वर्ष का पुत्र था, पर वह भी इन्हीं के केवल २० दिन पीछे विस्फोटक रोग से मर गया। विशालजी विशेषतया मधुरप्रिय थे। संवत् १९६१ में आपको कुछ खाँसी पाने लगी, जो मधुर भोजन के कारण शांत न हुई । दूसरे वर्ष एक भारी फोड़ा हो गया जो इन्हें बेहोश करके चीरा गया। उसकी दवा में फट साल्ट आदि खाने से फोड़ा तो अच्छा हो गया, परंतु खाँसी कुछ बढ़ गई । आपने इस पर कुछ विशेष ध्यान न दिया और इसकी साधारण दवा होती रही। इसी के साथ कुछ हलका बुखार भी प्रायः छः मास के
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy