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________________ १२७४ मिश्रबंधु-विनोद कुछ छंद भी कहे हैं । आपने दर्शन-शास्त्र पर दो-एक लेख लिखे थे और स्फुट विषयों पर अनेकानेक गंभीर प्रबंध रचे । आप संस्कृत के अच्छे विद्वान् थे और प्रायः गंभीर विषयों ही पर लेख लिखते थे। आपका रहना विशेषतया काशी में होता था। आपकी अकाल मृत्यु से हिंदी को बड़ी हानि हुई। (२३८२) जुगुलकिशोर मिश्र, ( उपनाम ब्रजराज कवि ) श्रापका जन्म संवत् १६१८ में, गँधौली, जिला सीतापुर में, हुआ था। आपके पिता पंडित नंदकिशोर मिश्र उपनाम लेखराज एक परम प्रसिद्ध हिंदी के कवि थे । बाल्यावस्था में व्रजराजजी ने फ़ारसी तथा हिंदी पढ़कर अपने चचा बनवारीलालजी से कविता सीखी, जो महाशय रचना तो नहीं करते थे, परंतु दशांग कविता में बड़े ही निपुण थे। लेखराजजी साधारणतया एक बड़े ज़िमींदार थे। इनकी प्रथम स्त्री से द्विजराज का जन्म हुआ और द्वितीय से व्रजराज और रसिकविहारी उपनाम साधू का । लेखराजजी रईसों की भाँति रहते थे और अपना प्रबंध कुछ भी नहीं देखते थे। इस कारण इनके ज्येष्ठ पुत्र द्विजराजजी सब प्रबंध करते थे। इनके बहुव्ययी होने के कारण सब प्राय उड़ जाती थी और कुछ ऋण भी हो गया । व्रजराजजी अच्छे प्रबंधकर्ता थे, सो ये बातें इनको बहुत अरुचिकारिणी हुईं। अतः अपने पिता से कहकर इन्होंने संपत्ति का प्रबंध अपने हाथ में ले लिया। इस बात से द्विज. राजजी से इनसे मनोमालिन्य हो गया, जो दिनोंदिन बढ़ते-बढ़ते प्रचंड शत्रुता की हद तक पहुँच गया। कभी इनके हाथ में प्रबंध रहता था, कभी द्विजराज के । इस प्रकार प्रबंध ठीक कभी न हुआ और ऋण बना ही रहा । कुछ दिनों में इन्हें पेशाब रुकने का रोग हो गया, जिससे ये मरणप्राय अवस्था को पहुँच गए । २८ वर्ष की अवस्था में डॉक्टर के शस्त्राघात से इनके प्राण बचे, परंतु रोग कुछ
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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