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वर्तमान प्रकरण
१२६१ कुटिल काल के वश हो गए । तृप्यताम् में इन्होंने १० छंदों में तर्पण के कुल नामों पर एक-एक छंद देशहितैषिता का लिखा था। इनके असमय स्वर्गवास से हिंदी का बड़ा अपकार हुमा । ये महाशय व्रजभाषा के प्रेमी थे, और खड़ी बोली की कविता को प्रादर नहीं । देते थे। इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में है।
अपने समाचार-पत्र के ग्राहकों के प्रति कविताअाठ मास बीते जजमान, अब तो करौ दच्छिना दान ।
हर गंगा। जो तुम चाहो बहुत खिझाय, यह कौनिउ भलमंसी प्राय ।
हर गंगा ॥१॥
लोगन को सुख चैन मैं राखति लच्छिमी नौं सुभ लच्छन खानी; शत्रु विनाशत देरन लावति कालिका-सी बनि काल-निसानी। विद्या बढ़ावति चारिहु ओर सरस्वति के समतूल सयानी ; एकहि रूप मैं राजै त्रिदेवि द्वै जैति जै श्रीविकटोरिया रानी ॥२॥
अरे बुढ़ापा तोहरे मारे अब तो हम नकन्याय गयन ; करत धरत कछु बनत नाही, कहाँ जान औ कैस करन । दाढ़ी नाक याक मा मिलिगै बिन दाँतन मुँह अस पोपलान; ददिही पर बहि-बहि आवति है कबौ तमाखू जो फाँकन । बार पाकिगे रीरौ झुकिगै मूड़ी सासुर हालन लाग; हाँथ पाँय कुछ रहे न श्रापनि केहि के आगे दुखु र्वावन ॥३॥
गैया माता तुमका सुमिरौं कीरति सब ते बड़ी तुम्हारि ; करौ पालना तुम लरिकन के पुरिखन बैतरनी देउ तारि । तुम्हरे दूध दही की महिमा जानै देव पितर सब कोय ;