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मिश्रबंधु-विनोद को अस तुम बिन दूसर जेहिका गोबर लगे पबित्तर होय ॥ ४ ॥
आगे रहे गनिका गज गीध सुतौ अब कोऊ दिखात नहीं हैं; पाप-परायन ताप भरे परताप समान न पान कहीं हैं। हे सुख-दायक प्रेमनिधे जग यों तो भले औ बुरे सबहीं हैं ; दीनदयाल औ दीन प्रभो तुमसे तुमही हमसे हमहीं हैं ॥ ५ ॥
सिर चोटी गुंधावती फूलन सों मेहँदी रचि हाथन पावन मैं ; परताप त्यों चूनरी सूही सजी मनमोहनी हावन भावन मैं । निसियोस बितावतीं पीतम के सँग झूलन मैं औ झुलावन मैं ; उनहीको सुहावन लागत है धुरवान की धावन सावन मैं ॥६॥ अनुवादित ग्रंथ-(१) राजसिंह, (२) इंदिरा, (३) राधारानी,
(४) युगलांगुरीय (बंकिमचंद्र के बँगला उपन्यासों से), (५) चरिताष्टक, (६) पंचामृत, (७) नीतिरत्नावली, (८) कथामाला, (९) संगीत शाकुंतल, (१०) वर्ण
परिचय, (११)सेनवंश, (१३) सूबे बंगाल का भूगोल। रचित ग्रंथ-(1) कलिकौतुक (रूपक), (२) कलिप्रभाव
(नाटक), (३) हठी हमीर (नाटक), ( ४ ) गोसंकट (नाटक), (५) जुआरी खुवारी (प्रहसन ), (६) प्रेमपुष्पावली, (७) मन की नहर, (८) शृंगारविलास, (१) दंगलखंड (पाल्हा), (१०) लोकोक्तिशतक, (११) तृप्यताम्, (१२) ब्रैडला-स्वागत, (१३) भारतदुर्दशा ( रूपक), (१४) शैव-सर्वस्व, (१५)
मानस विनोद, (१६ ) सौंदर्यमयी।। संगृहीत ग्रंथ-(.) रसखानशतक, (२) प्रतापसंग्रह । उर्दू का ग्रंथ-(१)दीवान बिरहमन ।