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वर्तमान प्रकरण
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लेख- प्रणाली और निज वृत्तांत इनके ग्रंथों में प्रधान हैं। विहारीबिहार में बिहारी सतसई के दोहों पर कुंडलियाँ लगाई गई हैं। इसकी रचना प्रशंसनीय होने पर भी कुछ शिथिल है । गद्यकाव्यमीमांसा बहुत ही विद्वत्तापूर्ण पुस्तक है । कविता की दृष्टि से इनकी गणना साधारण श्रेणी में की जा सकती है। इनकी अकालमृत्यु से हिंदी में गवेषणा-विभाग की बड़ी क्षति हुई। इनकी कविता का महत्व जैसा इनके गद्य से है, वैसा पद्य से नहीं ।
उदाहरण
"अब गद्य-विभाग की परीक्षा की जाती है । यहाँ साहित्यदर्पणकार के कथनानुसार तीन गद्य तो असमास, अल्पसमास, दीर्घसमास हैं, और चौथा वृत्तगंधि है । परंतु यह विचारना है कि प्रथम ही तीन गद्यों से सरस्वती का सारा गद्यभंडार भर जाता है, फिर कौन-सा स्थान शेष रह जाता है, जहाँ वृत्तगंधि गद्य स्थिर हो !! हाँ, वृत्तगंधि गद्य जब होगा, तब उन्हीं तीन में से कोई-सा होगा । इसलिये इसे प्रविभाग कहें तो कहें, पर गद्य-विभाग में तो रख ही नहीं सकते । "
परनिंदा ठगपनो कबहुँ नहिं चोरी करिहैं ;
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जंतुन को दै पीर कबहुँ नहिं जीवन हरिहैं । मिथ्या अप्रिय बचन नाहिं काहू सन कहि हैं। पर उपकारन त सबै बिधि सब दुख सहिहैं । (२३४३) बदरीनारायण चौधरी (प्रेमघन )
आपके पिता का नाम गुरचरण लाल था । ये पहले मिर्ज़ापुर में रहते थे, परंतु पीछे विशेषतया शीतलगंज, जिला गोंडा में रहते थे । इनका जन्म संवत् १९१२ भाद्रकृष्ण ६ को मिर्जापूर में हुआ | ये सरयूपारीण ब्राह्मण उपाध्याय भरद्वाजगोत्री थे । श्राप बहुत दिन तक नागरीनीरद तथा श्रानंदकादंबिनी नामक मासिक पत्र निकालते रहे । ये भारतेंदुजी