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मिश्रबंधु-विनोद
के साथियों में थे और भाषा के बड़े प्राचीन लेखक तथा कवि थे। एक बार हिंदी-साहित्य-सम्मेलन के सभापति नियत किए गए थे। आपके रचित निम्न-लिखित ग्रंथ हैं
(१) भारतसौभाग्य नाटक, (२) प्रयाग-रामागमन नाटक, (३) हार्दिकहर्षादर्श काव्य, (४) भारतबधाई, (५) आर्याभिनंदन, (६) मंगलाश, (७) क़लम की कारीगरी, (८) शुभसम्मिलन काव्य, (६) श्रानंदअरुणोदय, (१०) युगलमंगल स्तोत्र, (११ ) वर्षाविदुगान, (१२) वसंत-मकरंद बिंदु, (१३) कजली-कादंबिनी, (१४) वारांगनारहस्य महानाटक, (१५) संगीतसुधासरोवर, (१६) पीयूषवर्षा, (१७) श्रानंदबधाई, (१८) पितरप्रलाप, (१६) कलिकालतर्पण, (२०) मन की मौज, (२१) युवराजाशिष, (२२) स्वभावबिंदुसौंदर्य गद्यकाव्य, (२३) शोकाश्रुबिंदु पद्य, ( २४ ) विधवाविपत्तिवर्षा गद्य, ( २५) भारतभाग्योदय काव्य, (२६) कांता कामिनी उपन्यास, (२७) वृद्धविलाप प्रहसन, (२८) आत्मोल्लास काव्य, (२६) दुर्दशा दत्तापुर।
पटरानी नृप सिंधु की त्रिपथागामिनी नाम ; तुहि भगवति भागीरथी बारहिं बार प्रनाम । बारहिं बार प्रनाम जननि सब सुख की दाइनि ; पूरनि भक्तन के मनोरथनि सहज सुभाइनि । ब्रह्मलोकहू लौं करि निज अधिकार समानी ;
पूरी मम मन-पास सिंधु नृप की पटरानी ॥ १ ॥ कौन भरोसे अब इत रहिए कुमति प्राय घर घाली ; फूट्यो फूट बैर फलि फैल्यो बिधि की कठिन कुचाली।
चलिए बेगि इहाँ ते प्राली। जिन कर नाँहि छड़ी ते करिहैं कहा करद करवाली ; छमा-कवच-धारी ये बिहँसत खाय लात औ गाली ।