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________________ वर्तमान प्रकरण १२४९ सन् १९१२ से ये कलकत्ता की युनिवर्सिटी के कॉलेज में वेदव्याख्याता के पद पर काम कर रहे हैं। . (२३४०) बलदेवदास ये महाशय श्रीवास्तव कायस्थ, मौज़ा दौलतपूर, परगना कल्यानपूर, जिला फ्रतेहपूर के रहनेवाले थे। स्वामी छीतूदासजी इनके मंत्रगुरु थे, जिनकी आज्ञा से इन्होंने संवत् १९३६ में जानकीविजय-नामक २३ पृष्ठ का एक ग्रंथ बनाया। इसकी कथा अद्भुत रामायण के आधार पर कही गई है । वास्तव में यह कथा बिलकुल निर्मूल है, क्योंकि अद्भुत रामायण कोई प्रामाणिक ग्रंथ नहीं है । बलदेवदास ने प्रधानतः दोहा-चौपाइयों में यह ग्रंथ लिखा है, परंतु कहीं-कहीं और भी छंद लिखे हैं । इन्होंने गोस्वामीजी के मार्ग का अधिकतर अवलंब लिया है, यहाँ तक कि दो-चार जगह उन्हीं के पद अथवा भाव भी इन्होंने अपनी कविता में रख दिए हैं। इनकी गणना कथाप्रसंग के कवियों में मधुसूदनदास की श्रेणी में की जा सकती है। राम रजाय सुनत सब बीरा ; सजे सबेग सेन रनधीरा । चले प्रथम पैदल भट भारी; निज-निज अस्त्र-शस्त्र सब धारी। मनिगनजटित चली रथ पाँती ; भरे बिपुल श्रायुध बहु भाँती। चले तुरूंग बहु रंगबिरंगा; जुग पदचर प्रति सूरन संगा। असित बिसाल गात मातु महाकाल की सी, पीतपट देखि कै छटा की छबि छपकत ; रा0 मंडमाल रुंडजाल भुजदंड बाजू, . भाल खग्ग खप्पर कृपान सान लपकत । छूटे बिकराल बाल नैन बलदेव लाल, दिव्य मुख देखि कै दिनेस छबि झपकत ; सालक के घालिबे को काली ने निकाली जीह, लाल-लाल लोहू ते लपेटी लार टपकत ।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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