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वर्तमान प्रकरण पड़ता है कि ये नंदराम ' दूसरे थे, क्योंकि श्रृंगारदर्पण के रचयिता नंदराम ने शांतरस के अच्छे छंद नहीं कहे हैं। हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रक्खेंगे।
मोर किरीट मनोहर कुंडल मंज कपोलन पै अलकाली; पीत पटी लपटी तन साँवरे भाल पटीर की रेख रसाली। त्यों नंदरामजू बेनु बजावत आजु लखे बन मैं बनमाली ; नैन उघारिबे को मन होत न मोहन रूप निहारि कै आली। ( २१८७ ) लक्ष्मीशंकर मिश्र, एम० ए० रायबहादुर
ये महाशय सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनका जन्म संवत् १९०६ में हुआ था और संवत् १९६३ में इनका स्वर्गवास हुा । पहले ये बना रस कॉलेज में गणित के अध्यापक थे, पर संवत् १६४२ में सरकार ने इन्हें शिक्षा-विभाग में इंस्पेक्टर नियत कर दिया। इन्होंने गणितकौमुदी-नामक एक पुस्तक हिंदी में बनाई और बहुत दिन तकाकाशीपत्रिकाचलाई । बहुत दिनों तक ये नागरीप्रचारिणी सभा के सभापति रहे और यथाशक्ति सदैव हिंदी की उन्नति करते रहे। बहुतेरी पाठ्य-पुस्तकें भी इन्होंने शिक्षा-विभाग के लिये संपादित की।
(२१८८) रोमद्विज आपका नाम रामचंद्र था और आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। आपका जन्म संवत् १६०७ में हुआ था । आप हाई स्कूल अलवर के अध्यापक थे। आपकी कविता सरस, अनुप्रास-पूर्ण और श्रेष्ठ होती थी। इनके जानकीमंगल-नामक ग्रंथ से नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं ।
उदाहरण-- __ राम हिय सिय मेली जैमाल । ( टेक) मानहु धन बिच रच्यो चंचला सुरपतिचाप विशाल । लखिकै सकल भूप तन झरसे ज्यों जवास जलकाल; कह दुज राम बाम सुर गावत जनु कल कंठन जाल ॥ १ ॥