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________________ १२१२ मिश्रबंधु-विनोद सवैया भौरन मौर मनोहर मौलि अमोल हरा हिय मोतिया भायो ; नूतन पल्लव साजि अँगा पटुका कटि सोन जुही छवि छायो। कोकिल गायन भौंर बराती चढ़ो पवमान तुरंग सुहायो ; छाइ उछाह दिगंतन राम ललाम बसंत बनो बनि आयो ॥ २ ॥ (२१८९) गौरीदत्त सारस्वत ब्राह्मण पंडित गौरीदत्तजी का जन्म संवत् १८६३ में हुआ था। ४५ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने अध्यापक का काम किया और फिर अपना पद छोड़ कर ये परमार्थ में प्रवृत्त हुए । उसी दिन अपनी सारी संपत्ति इन्होंने नागरी-प्रचार में लगा दी और अपनी शेष आयु-भर ये स्वयं भी इसी काज में लगे रहे । इन्होंने ग्राम-ग्राम और नगर-नगर फिरकर निरंतर नागरी-प्रचार पर व्याख्यान दिए और नागरी पढ़ाने को पाठशालाएँ स्थापित की । पंडितजी ने बहुत. से ऐसे खेल और गोरखधंधे बनाए, जिनमें लोगों का जी लगे और वे इसी प्रकार से नागरी लिपि जान जायँ । मेलों, तमाशों आदि में जहाँ अन्य लोग अपनी दूकानें ले जाते थे, वहाँ ये अपना नागरी का झंडा जाकर खड़ा करते थे । नागरी-प्रचार में ये महाशय इतने तल्लीन थे कि जयराम के स्थान पर लोग भेंट होने पर इनसे 'जय नागरी' कहते थे । मेरठ का नागरी स्कूल इन्हीं के प्रयत्नों से बना था । यह अब तक भली भाँति चल रहा है। इन्होंने मेरठ-नागरीप्रचारिणी सभा भी अपने उत्साह से चलाई और स्त्री-शिक्षा पर तीन पुस्तकें बनाई। इनका बनाया हुआ गौराकोष भी प्रसिद्ध है । आपका गद्य मनोहर होता था । इनका स्वर्गवास संवत् १९६२ में हुआ । इनकी समाधि पर मोटे अक्षरों में 'गुप्त संन्यासी नागरोप्रचारानंद' अंकित है। (२१९० ) मोहनलाल विष्णुलाल पांड्या इनका जन्म संवत् १९०७ में हुआ था। ये भारतेंदु हरिश्चंद्र
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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