________________
१२..
मिश्रबंधु-विनोद हनुमान न नेकौ निहाएँ कहूँ हग नीचे किए सुख पावती हैं; बड़भागिनि पी के सोहाग भरी कबौं आँगन हू लौं न आवती हैं ॥२॥
इनके पुत्र कविवर सीतलाप्रसादजी से विदित हुआ कि इनका शरीर-पात संवत् १९३६ में, ३८ वर्ष की अवस्था में, हुआ । द्विज कवि मन्नालाल से हनुमान की घनिष्ठ मैत्री थी।
(२१८६ ) नंदराम ये महाशय कान्यकुब्ज ब्राह्मण मौज़ा सालेहनगर ज़िला लखनऊ के रहनेवाले थे । यह स्थान गोमताजी के बसहरी घाट से ४ मील और हमारे जन्मस्थान इटौंजा ग्राम से ८ मील की दूरी पर स्थित है। संवत् १९३४ में ये महाशय हमसे इटौंजा में मिले थे। शृंगारदर्पण की एक हस्त-लिखित प्रति भी इनके पास थी, जिसके बहुत-से छंद इन्होंने हमको सुनाए । इनकी अवस्था उस समय लगभग चालीस वर्ष की थी और उसके प्रायः दश वर्ष के पीछे इनका शरीर-पात हुश्रा । अतः इनके जन्म और मरणकाल संवत् १८६४ और १६४४ के आसपास हैं।
इन्होंने शृंगारदर्पण-नामक १५४ पृष्ठों (मॅझोली साँची) का एक बड़ा ग्रंथ भावभेद और रसभेद के वर्णन में संवत् १९२६ में बनाया, जिसकी रीति प्रणाली पद्माकरजी के जगद्विनोद से मिलती है । इसमें दोहा, सवैया और घनाक्षरी छंद बहुतायत से हैं, परंतु कहीं छप्पय श्रादि दो-एक अन्य प्रकार के भी छंद आ गए हैं। इन्होंने अपनी भाषा में बाह्याडंबरों को स्थान नहीं दिया है और वह मधुर एवं निर्दोष है। इनके भाव भी साधारणतः अच्छे हैं । इनकी पुस्तक भारसजीवन यंत्रालय में मुद्रित हो चुकी है, जिसके अंत में इनके सात स्फुट छंद भी लिखे गए हैं। शिवसिंहसरोज में शांतरस के कवित्त बनानेवाले एक नंदराम का नाम लिखा है, पर उनके समय के निश्चय में कुछ भी नहीं कहा गया है । जान