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वर्तमान प्रकरण
जीवन सुकवि प्रेम अंतर विचार कहै,
___ आपु महराज सीस कीन्हे छत्र छाँह है। नाम-(२१८३ ) शिवकवि भाट, असनी। ग्रंथ-स्फुट । रचनाकाल-१९३१ । विवरण-साधारण श्रेणी के कवि थे । इनके भड़ौवा सुने गए हैं।
देखिए नं. ७३५ । (२१८४) बेनीसिंह ठाकुर परसेहँड़ी, सीतापुर श्रापका जन्म संवत् १८७६ में हुआ था। आप हिंदी-साहित्य के अच्छे मर्मज्ञ थे। कविजन आपके यहाँ प्रायः आया-जाया करते थे। आपने सं० १६३१ में शृंगाररत्नाकर-नामक एक संग्रह बनाया था, जो एक लेखक की असावधानी से लुप्त हो गया। आपका देहांत १६४१ में हुअा। आपके पुत्र रामेश्वर बख्शसिंह भी एक सुकवि थे। इनका भी स्वर्गवास हो गया ।
(२१८५ ) हनुमान . ये महाशय प्रसिद्ध कवि मणिदेव वंदीजन के पुत्र और काशी के रहनेवाले थे। हमने इनका कोई ग्रंथ नहीं देखा है, परंतु इनके स्फुट छंद बहुतायत से मिलते हैं। इन्होंने शृंगाररस की कविता की है । इनकी भाषा व्रजभाषा है और वह संतोषदायिनी है । इनकी कविता मनोहर और सरस है। हम इन्हें तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं। उदाहरणार्थ इनके दो छंद नीचे लिखे जाते हैंननदी औ जेठानी नहीं हँसती तौ हितू तिनहीं को बखानती मैं ; घरहाई चवाव न जो करती तो भलो औ बुरो पहिचानती मैं। हनुमान परोसिनि हू हित की कहतीं तौ अठान न ठानती मैं ; यह सीख तिहारी सुनौ सजनी रहती कुलकानि तौ मानती मैं ॥१॥ निज चाल सों और जे बाल तिन्हें कुल की कुलकानि सिखावती हैं; ननदी ौ जेठानी हँसावे तऊ हँसी अोठन ही लौं बितावती हैं।