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________________ मिश्र बंधु विनोद 1 किया, आप संस्कृत तथा हिंदी में अच्छी योग्यता रखते थे । द्वितीय हिंदी - साहित्य सम्मेलन के सभापति होकर आपने एक सारगर्भित एवं प्रशंसनीय वक्तृता दी । श्रापका कविताकाल संवत् १९३० से समझना चाहिए। इनका एक ग्रंथ “विभक्तिविचार" हमने देखा है, जिससे इनकी विद्वत्ता प्रकट होती है । पर इस विषय में हम इनसे सहमत नहीं हो सकते, क्योंकि हिंदी यद्यपि अधिकांश में संस्कृत एवं प्राकृत से निकली है, तथापि उसका रूप उक्त भाषाओं से बहुत कुछ भिन्न है और हर बात में हम उसे संस्कृत-व्याकरण से नियमबद्ध नहीं करना चाहते। आपका प्राकृत विचार- नामक लेख भी दर्शनीय है । आपने शिक्षा-सोपान और सारस्वत सर्वस्व - नामक दो ग्रंथ भी लिखे हैं और सैकड़ों अच्छे लेख आपके वर्तमान हैं। थोड़े ही दिन हुए आपका शरीरांत हो गया । १२०६ ( २१८२ ) सहजराम ये महाशय अवध प्रदेशांतर्गंत जिला सुलतानपूर के बँधुवा ग्रामनिवासी सनाढ्य ब्राह्मण थे । शिवसिंहजी ने इनका जन्म संवत् १९०२ दिया है । इनका बनाया हुआ प्रह्लाद चरित्र नामक ४५ पृष्ठ का एक उत्कृष्ट ग्रंथ हमारे पास वर्तमान है और इनकी रामायण के भीती कांड ( किकिधा, सुंदर और लंका ) हमने देखे हैं । अपने ग्रंथों में इन्होंने समय का कोई ब्यौरा नहीं दिया है । इनका कविताकाल १९३० समझना चाहिए। इन ग्रंथों की भाषा और रचना सब गोस्वामी तुलसीदासजी की भाँति है । इस सत्कवि ने अपनी कविता बिलकुल गोस्वामीजी में मिला दी है । ऐसी उत्तम कविता दोहा-चौपाइयों में गोस्वामीजी और लाल के अतिरिक्त शायद कोई भी कवि नहीं कर सका है । इसके भक्ति, ज्ञान आदि के विचार सब गोस्वामीजी से मिलते से हैं, और रचनाशैली भी वही है । प्रह्लाद चरित्र की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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