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________________ प्रकरण (२१७४) श्रीनिवासदास लाला ये महाशय अजमेरा वैश्य वाला मंगीलाल के पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १६०८ कार्तिक सुदी परिवा को मथुरा में हुआ था। राजा लक्ष्मणदास की ओर से ये महाशय उनकी दिल्लीवाली कोठी के संचालक और एक बड़े रईस थे । इनकी कविता अमृत में डुबोई होती थी। भारतेंदु के अतिरिक्त इन्हीं ने हिंदी में उत्कृष्ट नाटक बनाए हैं। सप्ता संवरण, संयोगिता स्वयंवर, तथा रणधीर प्रेममोहनी-नामक इन्होंने तीन नाटक-ग्रंथ बनाए, जिनका पूर्ण समादर हिंदी-पठित समाज में हुआ, विशेषतया अंतिम दोनों का। इनके अंतिम नाटक के अनुवाद उर्दू और गुजराती में हुए और वह खेला भी गया । इन्होंने परीक्षागुरु-नामक एक उपन्यास भी बनाया, पर वह ऐसा अच्छा नहीं है जैसे कि इनके अन्य ग्रंथ हैं। हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करेंगे। इनको अकालमृत्यु संवत् १९४४ में हो गई, जिससे हिंदी के नाटक-विभाग को बड़ी क्षति पहुंची। (२१७५ ) रामपालसिंहजी राजा कालाकाँकर जिला प्रतापगढ़ इनके पिता का नाम लाल प्रतापसिंह और पितामह का राजा हनुमंतसिंह था । इनका जन्म संवत् १६०५ में हुआ । इनके पिता ग़दर के समय अँगरेज़ों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। राज साहब की शिक्षा का प्रबंध इनके दादा राजा हनुमंतसिंह ने किया। इन्होंने अठारह वर्ष की अवस्था तक हिंदी, फारसी और अँगरेज़ी में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली थी। राजा हनुमंतसिंह के और कोई उत्तराधिकारी न होने तथा इनके पिता के लड़ाई में मारे जाने के कारण वे इन पर विशेष प्रेम रखते थे । अतः राजा हनुमंतसिंहजी ने अपने जीते जी इनको कालाकाँकर की अपनी रियासत का मालिक कर दिया । राजा रामपालसिंहजी के विचार ब्राह्मो-धर्म के
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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