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१९९८
मिश्रबंधु-विनोद ये १६ वर्ष की ही अवस्था से कविता करने लगे थे। पहले इन्हें सरकार ने तहसीलदार नियत किया और दो ही वर्ष में, संवत् १६३६ में, यक्स्ट्रा असिस्टैंट कमिश्नर कर दिया । यह वही पद है जो यहाँ डिपुटी कलेक्टर के नाम से प्रख्यात है। इन्होंने सरकारी नौकरी के समय भी साहित्य-रचना को नहीं भुलाया और अवकाश पाकर ये बराबर ग्रंथ-रचना करते रहे । इनका शरीर-पात थोड़ी ही अवस्था में, संवत् १९५५ में, हो गया। इन के बनाए हुए अंथ ये हैं-श्यामास्वप्न, श्यामसरोजिनी, प्रेमसंपत्तिलता, मेघदूत, ऋतुसंहार, कुमारसंभव, प्रेमहजारा, सज्जनाष्टक, प्रलय, ज्ञानप्रदीपिका, सांख्य ( कपिल ) सूत्रों की टीका, वेदांतसूत्रों (वादरायण ) पर टिप्पणा और बानी वार्ड विलाप । हमारे देखने में इनके ग्रंथ नहीं आए, पर सुनते हैं कि वे उत्कृष्ट हैं । उदाहरण
आई शिशिर बरोरु शालि अरु ऊखन संकुल धरनी ; प्रमदा प्यारी ऋतु सोहावनी क्रौंच रोर मनहरनी । मूंदे मंदिर उदर झरोखे भानु किरन अरु भागी ; भारी बसन हसन मुख बाला नवयौवन अनुरागी ।
(२१७३ ) गदाधरसिंह (बाबू) इनका जन्म संवत् १६०५ में हुआ था । इन्होंने कुछ दिन व्यापार किया, पर उसके न चलने से सरकारी नौकरी कर ली और अंत तक उसे करते रहे । हिंदी की इन्हें बड़ी रुचि थी और इन्होंने अंत समय अपना पुस्तकालय एवं सब धन काशी-नागरीप्रचारिणी सभा को दे दिया । इन्होंने कादंबरी, वंगविजेता, दुर्गेशनंदिनी, और पोथेलो के भाषानुवाद किए, तथा रोमन उर्दू की पहली पुस्तक, एवं भगवद्गीतानामक पुस्तकें बनाई । ये ऐतिहासिक और पौराणिक विवरण की डायरी-नामक एक अच्छी पुस्तक लिख रहे थे; पर वह असमाप्त रह गई और संवत् १९५५ में इनका शरीर-पात हो गया ।