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________________ वर्तमान प्रकरण ११३३ पर देखता और अपनी कविता में उसे हर स्थान पर सन्निविष्ट करता था । रूपक भी भारतेंदुजी ने बहुत विशद लिखे हैं। राजनीतिक तथा सामाजिक सुधारों पर इन्होंने अपने विचार जगह-जगह पर सबल भाषा में प्रकट किए हैं । इस कविरत्न ने पद्य में व्रजभाषा का और गद्य में खड़ी बोली का विशेषतया प्रयोग किया है, परंतु उर्दू, खड़ी बोली, व्रजभाषा, माड़वारी, गुजराती, बँगला, पंजाबी, मराठी,. राजपूतानी, बनारसी, अवधी आदि सभी भाषाओं में उत्कृष्ट और सरस रचनाएँ की हैं । इन्होंने सद्य और पद्य प्रायः बराबर लिखे हैं । ग्रंथों के अतिरिक्त बाबू साहब ने कई समाचारपत्र और पत्रिकाएँ चलाई | वर्तमान हिंदी की इनके कारण इतनी उन्नति हुई कि इनको इसका जन्मदाता कहने में भी अत्युक्ति न होगी । यदि इनका विशेष वर्णन देखना हो, तो हमारे रचित नवरत्न में देखिए । " • उदाहरण ; 1 हम हूँ सब जानतीं लोक की चालन क्यों इतनो बतरावती हौ हित जामैं हमारो बनै सो करौ सखियाँ तुम मेरी कहावती हौ हरिचंदजू या मैं न लाभ कछू हमैं बातन क्यौं बहरावती हौ सजनी मन हाथ हमारे नहीं तुम कौन को क्रा समुझावती हौ ॥ १ ॥ पचि मरत वृथा सब लोग जोग सिरधारी ; ; साँची जोगिन पिय बिना वियोगिन नारी । बिरहागिनि धूनी चारों ओर लगाई ; कानों पहिराई | लटकारी ; वियोगिन नारी । बंसीधुनि की मुद्रा लट उरझि रही सोइ लटकाई साँची जोगिन पिय बिना है यह सोहाग का अटल सगुन की मूरति ख़ाक सिर सेंदुर देकर चोटी गूथ हमारे बाना ; न कभी चढ़ाना | बनाना ;
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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