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मिश्रबंधु-विनोद दर्शनीय है। चंद्रावली से इनके असीम प्रेम और भक्ति का अच्छा परिचय मिलता है। सत्यहरिश्चंद्र भारतेंदुजी की कविस्व-शक्ति का एक अद्भुत नमूना है। प्रमयोगिनी में इन्होंने अपने विषय की बहुतसी बातें लिखी हैं । इसमें हँसी-मज़ाक़ का अच्छा चमत्कार है। द्वितीय भाग इनके रचित इतिहास-ग्रंथों का संग्रह है, जिसमें काश्मीरकुसुम, बादशाहदर्पण और चरितावली प्रधान हैं । चरितावली में इन्होंने अच्छे-अच्छे महानुभावों के चरित्रों का वर्णन किया है। तृतीय भाग में राजभक्तिसूचक काव्य है । इसमें १३ ग्रंथ हैं, परंतु उनकी रचना उत्कृष्ट नहीं हुई है। चतुर्थ भाग का नाम भक्तिसर्वस्व है । इसमें १८ भक्तिपक्ष के ग्रंथ हैं, जिनमें वैष्णवसर्वस्व, वल्लभीयसर्वस्व, उत्तरार्द्ध भक्तमाल तथा वैष्णवता और भारतवर्ष उत्तम रचनाएँ हैं। पंचम भाग का नाम काव्यामृतप्रवाह है। इसमें १८ प्रेमप्रधान ग्रंथ हैं, जिनमें प्रेमफुलवारी, प्रेमप्रलाप, प्रेममालिका और कृष्णचरित्र प्रधान हैं। नाटकावली के अतिरिक्त भारतेंदुजी का यह भाग प्रशंसनीय है। छठे भाग में हँसी-मजाक के चुटकुले और छोटे-छोटे कई निबंध तथा अन्य लोगों के बनाए हुए कई ग्रंथ हैं, जो इनके द्वारा प्रकाशित हुए थे।
इनकी कविता का सर्वोत्तम गुण प्रेम है। इनके हृदय में ईश्वरीय एवं सांसारिक प्रेम बहुत अधिक था; इसी कारण इनकी रचना में प्रेम का वर्णन बहुत ही अच्छा आया है। भारतेंदुजी अपने समय के प्रतिनिधि कवि थे । इनको हिंदूपन तथा जातीयता का बहुत ही बड़ा ध्यान रहता था । हास्य की मात्रा भी इनकी रचनाओं में विशेषरूप से पाई जाती है। वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, अंधेरनगरी और प्रेमयोगिनी में हास्यरस का अच्छा समावेश है। इनकी कविता बड़ी सबल होती थी और विविध विषयों के वर्णनों में इस कवि ने अच्छी शक्ति दिखलाई है। सौंदर्य को यह सभी स्थानों