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वर्तमान प्रकरण रही हैं। थोड़े दिन से महारथी, वीणा, त्यागभूमि, विशाल भारत, सम्मेलन-पत्रिका भी सम्मेलन से निकलती है, परंतु उसकी और पत्रिकाओं के समान उन्नत होने की आवश्यकता है।
छत्तीसवाँ अध्याय . पूर्व हरिश्चंद्र-काल
(१९२६-३५ )
(२१६९) भारतेंदु हरिश्चंद्रजी इनका जन्म संवत् १९०७ में भाद्र शुक्ल ७ को काशीजी में हुआ था। इनके पिता का नाम गोपालचंद्र ( उपनाम गिरधरदास) था । ये अग्रवाल वैश्य थे । इन्होंने बाल्यावस्था में पढ़ने में अधिक जी नहीं लगाया। केवल ११ वर्ष की अवस्था तक इन्होंने विद्याध्ययन किया, परंतु पीछे से शौकिया बहुत-सी भाषाओं तथा विद्याओं का अभ्यास कर लिया था। इन्होंने बहुत-से स्वदेश-प्रेम के काम किए और हिंदीगद्य को इनसे बहुत सहायता मिली । इनका चित्त बहुत ही मज़ाकपसंद था। पहली एप्रिल एवं होली को ये विना कुछ दिल्लगी किए नहीं रहते थे। उदारता इनकी बहुत ही बढ़ी-चढ़ी थी, यहाँ तक कि इन्होंने अपने भाग की पैत्रिक संपत्ति बहुत जल्द स्वाहा कर दी। इनका शरीर पात संवत् १९४१ में, काशी में, हुआ। __ सत्रह वर्ष की अवस्था से इन्होंने काव्य-रचना प्रारंभ कर दी थी
और अंत समय तक ये काव्यानंद ही में मग्न रहे । इनकी रचनाओं का संग्रह छः भागों में खगविलास-प्रेस से प्रकाशित हुआ है । सब मिलकर इनके छोटे-बड़े १७५ ग्रंथ इस संग्रह में हैं । प्रथम भाग में 15 नाटक और १ ग्रंथ नाटकों के नियमों का है। इनमें सत्यहरिश्चंद्र, मुद्राराक्षस, चंद्रावली, भारतदुर्दशा, नीलदेवी, और प्रेमयोगिनी प्रधान हैं । भारसदुर्दशा और नीलदेवी में भारतेंदुजी का स्वदेश-प्रेम