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________________ ११८७ वर्तमान प्रकरण पन से बहुत ही आदर पाया, परंतु ग्राहकों की अनुदारता से यह . स्थायी न हो सका । संवत् १६४० में हिंदी का प्रसिद्ध पत्र 'हिंदोस्तान' पहले-पहल प्रायः दो वर्ष अँगरेज़ी में निकला, फिर प्रायः दो मास अँगरेजी तथा हिंदी में निकलकर एक बरस तक अँगरेजी, हिंदी और उर्दू में छापा गया। उस समय तक यह मासिक था । इसके पीछे यह दस महीने तक साप्ताहिक रूप से अँगरेजी में इंगलैंड से निकला । १ नवंबर सं० १९४२ से यह पत्र दैनिक कर दिया गया। इस पत्र के स्वामी राजा रामपालसिंह सदा इसके संपादक रहे और सहकारी संपादकों में बाबू अमृतलाल चक्रवर्ती, पंडित मदनमोहन मालवीय और बाबू बालमुकुंद गुप्त-जैसे प्रसिद्ध लोगों की गणना है । राजा साहब के मृत्यु के साथ-ही-साथ यह पत्र भी विलीन हो गया । कुछ दिन पश्चात् उनके उत्तराधिकारी हमारे मित्र राजा रमेशसिंहजी ने 'सम्राट' पत्र को पहले साप्ताहिक और फिर दैनिक रूप में निकाला, परंतु हिंदी के अभाग्य से राजा रमेशसिंहजी की असामयिक मौत के कारण वह भी बंद हो गया। सं० १९४० से प्रसिद्ध पत्र 'भारतजीवन' बाबू रामकृष्ण वर्मा ने साप्ताहिक रूप में काशी से निकाला, जिसमें बहुत दिन तक नागरीप्रचारिणी सभा की कार्यवाही छपती रही और अभी तक वह किसी तरह चल रहा है । संवत् १६४२ में कानपुर से भारतोदय दैनिक पत्र बाबू सीताराम के संपादकत्व में निकला, जो एक ही साल चलकर बंद हो गया। संवत् १९४४ व ४६ में 'आर्यावर्त' और 'राजस्थान'नामक दो पत्र आर्य समाज की तरफ से निकले । संवत् १६४५ में 'सुगृहिणी' मासिक पत्रिका हेमंतकुमारीदेवी ने निकाली । सं०१९४६ में श्रीमती हरदेवी ने 'भारतभगिनी' मासिक रूप में निकाली । संवत् १६४७ में सुप्रसिद्ध पत्र 'हिंदी-वंगवासी' का जन्म हुआ, जो कुछ दिन बड़ी उत्तमता से चलता रहा था और जिसकी ग्राहक-संख्या
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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