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________________ मिश्रबंधु - विनोद वश पंडित गौरीदत्त का स्वर्गवास हो जाने से वह अब सुषुप्तावस्था को प्राप्त हो गई है । जौनपूर-सभा का भी परिश्रम अच्छा है; पर इसकी भी दशा संतोषदायिनी नहीं है। प्रयाग की नागरीप्रवर्द्धिनी सभा अभी थोड़े ही दिनों से स्थापित हुई है, पर तो भी इसके उत्साह से हिंदी के विशेष उपकार होने की आशा है । कलकत्ते की एक लिपि-विस्तार परिषद् ने भी कई साल तक अच्छा काम किया था । rent स्तित्व हिंदी के लिये बड़े गौरव का था, परंतु श्रीशारदाचरण जज हाईकोर्ट का देहांत हो जाने से उसका लोप हो गया । इसी अभिप्राय से इस सभा ने देवनागर- नामक पत्र निकाला था, जिसमें सभी भाषाओं के लेख नागरी लिपि में लिखे जाते थे, वह भी बंद हो गया । भाषाओं के एकीकरण में यह सभा परमोपयोगिनी थी । देश में बहुत काल से नागरी लिपि का प्रचार चला आता है । अब मदरास एवं बंगाल के विद्वानों ने भी इसी लिपि को ग्राह्य माना है, और गुजरात में भी इसका प्रचार बढ़ता देख पड़ता है । यहाँ तक कि श्रीमान् बड़ौदा- नरेश ने नागराक्षरों की शिक्षा श्रावश्यक कर दी है । नागरीप्रचारिणी सभा के प्रयत्नों से १६६७ के नवरात्र में काशी में प्रथम हिंदो - साहित्य-सम्मेलन- नामक एक महती सभा हुई थी, जिसमें अन्य विषयों के साथ एक लिपि-विस्तार के उपायों पर विचार हुआ था । प्रयाग और कलकत्ते में भी इसके अधिवेशन हुए । अब तो सम्मेलन एक प्रतिष्ठित संस्था है । इसके १८ अधिवेशन हो चुके हैं । एक अधिवेशन के सभापति महात्मा गांधी थे । इसके द्वारा परीक्षाएँ होती हैं ! उससे हिंदी का बड़ा हित है। इसकी ओर से प्रतिवर्ष १२००) का मंगलाप्रसाद पुरस्कार हिंदी के उत्कृष्ट लेखक को दिया जाता है सम्मेलन पुस्तक - प्रकाशन का भी काम करता है । इसके द्वारा हिंदीविद्यापीठ नाम का एक शिक्षालय भी चलता है। इसकी ओर से सम्मेलन पत्रिका भी निकलती है। इसका काम बहुत व्यापक है । ११८०
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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