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________________ प्रकरण ११७४ वर्तमान प्रकरण . १९७६ आदिकों से इसे एकत्र करे, तो विदित हो कि इसकी रचनाएँ कैसी हैं। अभी तो पँवारा ऐसा नीरस समझा जाता है कि लोग निंदा करने में किसी नीरस और लंबे प्रबंध को पँवारा कहते हैं। हिंदी के सौभाग्य से पिछले ३० या ३५ वर्ष के अंदर पाँच-सात सभाएँ भी काशी, मेरठ, जौनपूर, बारा, प्रयाग, कलकत्ता आदि में स्थापित हुई। काशी-नागरीप्रचारिणी सभा ने संवत् १९५० में जन्म | ग्रहण किया। तभी से इसकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जाती है । यह बराबर नागरीप्रचारिणी पत्रिका निकालती रही है और अब ग्रंथमाला एवं लेखमाला भी निालकने लगी है । ग्रंथमाला में अच्छे-अच्छे ग्रंथ निकल गए और निकालते जाते हैं । हिंदी को युक्तप्रांत के न्यायालयों में जो स्थान मिला है, वह अधिकांश में इसी के प्रयत्नों का फल है। इसने तुलसी-कृत रामायण और पृथ्वीराज रासो की परम शुद्ध प्रतियाँ प्रचुर श्रम द्वारा प्रकाशित की और २८ साल से सरकार से सहायता लेकर हिंदी के प्राचीन ग्रंथों की खोज में यह बड़ा ही सराहनीय श्रम कर रही है। इसने पदकों, प्रशंसापत्र प्रादि के द्वारा उत्तम लेख-प्रणाली चलाने का प्रबंध किया और लेखकों को बहुत प्रोत्साहन दिया। अनेकानेक प्रयत्नों से इसने हिंदी-भाषा और नागरी अक्षरों का प्रचार बढ़ाया। बहुत-से विद्वानों की सहायता से यह एक वैज्ञानिक कोष तैयार कर चुकी है, अब एक बृहत् कोष भी बना रही है, जो पूर्ण होने पर आ चुका है, इस समय तक इसके ४० खंड निकल चुके हैं । यह इतिहास भी इसी की प्रेरणा से बना है। . __ श्रारा-नागरीप्रचारिणी सभा प्रायः २५ वर्षों से बिहार में स्थापित है । इसने भी हिंदी के प्रचार में परम प्रशंसनीय श्रम किया है। अब तक हिंदी का कोई सर्वमान्य व्याकरण नहीं था । इस सभा ने एक ऐसा व्याकरण भी तैयार करा लिया है। मेरठ-सभा ने भी हिंदी-प्रचार में अच्छा श्रम किया ; पर दुर्भाग्य
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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