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________________ ११७७ वर्तमान प्रकरण उन्होंने प्रायः एक सहस्र कवियों का सूक्ष्म हाल प्रचुर श्रम द्वारा एकत्र किया । दि माडर्न व. कुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान और 'कविकीर्तिकलानिधि' को भी डॉक्टर ग्रियर्सन तथा पंडित नकछेदी तिवारी ने लिखा । पर ये ग्रंथ विशेषतया 'सरोज' पर ही अवलंबित हैं । सरकार हाल में आर्थिक सहायता देकर काशीनागरी-प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी पुस्तकों की खोज सं० १९५७ से करा रही है। इससे बहुत-से उत्तम ग्रंथों और कवियों का पता लग रहा है । खोज पूरे इस प्रांत तथा राजस्थान इत्यादि में हो जाने पर उससे इतिहास की उत्तम सामग्री मिल सकेगी। हिंदी में समालोचना की चाल बहुत थोड़े दिनों से चली है। प्राचीन प्रथा के लोग समझते थे कि समालोचना करने में किसी भी कवि की निंदा न करनी चाहिए। इस विचार के कारण समालोचना की उन्नति प्राचीन काल में न हुई । सबसे प्रथम हिंदी में महाकवि दास ने समालोचना की भोर कुछ ध्यान दिया, पर बहुत दबी कलम से कहने के कारण उन्होंने किसी के विषय में अधिक न कहा। भारतेंदुजी भी इस ओर कुछ झुके थे, यहाँ तक कि उत्तरी हिंद के वे एक-मात्र वर्तमान समालोचक कहलाते थे। समालोचक-नामक एक पत्र भी निकला था, और छत्तीसगढ़-मित्र भी समालोचना पर विशेष ध्यान देता था, पर काल-गति से ये दोनों पत्र अस्त हो गए। अन्य पत्रपत्रिकाएँ भी समय-समय पर समालोचना करती हैं। ब्रजनंदनप्रसाद एवं महावीरप्रसाद द्विवेदी ने कुछ समालोचनाएँ लिखी हैं । "हिंदीनवर' नामक समालोचना ग्रंथ थोड़े ही दिन हुए हमने भी बनाया था। इस समय मासिक पत्रों में समालोचना लिखी जाती है और दो साल से कृष्णविहारी मिश्र हिंदी समालोचक नाम का एक पत्र निकाल रहे हैं । यदि उसका श्राकार कुछ बढ़ाकर उसे मासिक कर दिया जाय, तो उससे इस अंग के पूर्ण होने की विशेष प्राशा है।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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