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________________ ११७६ मिश्रबंधु-विनोद नाटक बनाया, तथा सं० १९०७ में भानुनाथ झा ने प्रभावतीहरण नाटक निर्माण किया, जिसमें मैथिल भाषा के अतिरिक्त प्राकृत तथा संस्कृत का भी प्रयोग किया गया । हर्षनाथ झा ने भी इसी समय कई ग्रंथ बनाए, जिनमें ऊषाहरण मुख्य है । व्रजनंदनसहाय और शिवनंदनसहाय ने भी नाटक रचे हैं । ___ फिर भी कहना ही पड़ता है कि हिंदी में नाटक-विभाग अभी बिलकुल संतोषदायक दशा में नहीं है । भारतेंदु, श्रीनिवासदास आदि के रचित नाटकों के अतिरिक्त अधिकांश शेष उत्तम नाटक-ग्रंथ या तो नाटक हैं ही नहीं, अथवा केवल अनुवाद-मात्र हैं। हिंदी-इतिहास-विषयक अभी तक कोई अच्छा ग्रंथ नहीं है। सबसे प्रथम प्रयत्न इस विषय में भूषण के समकालिक कालिदास कवि ने किया। पर उन्होंने केवल हज़ार छंदों का हज़ारा-नामक एक संग्रह बनाया । इस ग्रंथ से इतना लाभ अवश्य हुआ कि जिन कवियों के नाम इसमें आए हैं, उनके विषय में ज्ञात हो गया कि वे या सो कालिदास के समकालिक थे, अथवा पूर्व के। बहुत-से कवियों की रचनाएँ भी इसी ग्रंथ के कारण सुरक्षित रहीं। संवत् १६६० के लगभग प्रवीण कवि ने सारसंग्रह-नामक एक ग्रंथ संगृहीत किया, जिसमें प्रायः ११० कवियों की कविता पाई जाती है । यह अमुद्रित ग्रंथ पंडित युगलकिशोर के पास है । दलपतिराय बंसीधर ने संवत् १७६२ में अलंकाररत्नाकर-नामक एक संग्रह बनाया, जिसमें उन्होंने अपने अतिरिक्त ४४ कवियों के छंद लिखे । भक्तमाल, कविमाजा (१७१८), सत्कविगिराविलास (१८०३), विद्वन्मोदतरंगिणी (१८७४) और रागसागरोद्भव (१६००) भी कुछ प्राचीन संग्रह हैं । सूदन ने भी प्रायः ११० कवियों के नाम लिखे हैं । भाषाकाव्यसंग्रह स्कूलों की एक पाठ्य-पुस्तक-मात्र थी। संवत् १९३० के लगभग ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने शिवसिंहसरोज-नामक एक अनमोल ग्रंथ बनाया, जिसमें
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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