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________________ वर्तमान प्रकरण १९७५ के ढंग पर लिखा गया है, पर उसमें इन ग्रंथों से भी कम नाटकपन है, यहाँ तक कि उसे नाटक कहना ही व्यर्थ है । देवमायाप्रपंच नाटक में भी यवनिका श्रादि के प्रबंध नहीं हैं। इसे देव कवि ने बनाया। प्रभावती और आनंदरघुनंदन भी पूर्ण नाटक नहीं हैं। सबसे पहला. नाटक भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता गिरधरदास ने सं० १९१४ में बनाया, जिसका नाम "नहुष नाटक' है। राधाकृष्णदास ने उसका संपादन किया। इसके पीछे राजा लक्ष्मणसिंह ने शकुंतला का भाषानुवाद किया। नाटकों का प्रचार हिंदी में प्रधानतया हरिश्चंद्र ही ने किया । उन्होंने बहुत-से उत्तम नाटक बनाए, जिनमें से कई का अभिनय भी हुआ । इनके अतिरिक्त श्रीनिवासदास, तोताराम, गोपालराम, काशीनाथ खत्री, पुरोहित गोपीनाथ, लाला सीताराम आदि ने भी नोटक बनाए और अनुवादित किए हैं। पं० रूपनारायण पांडे ने टी० एल० राय के बहुत-से नाटकों के अनुवाद किए हैं। बाबू जयशंकर प्रसाद ने कई उत्तम मौलिक नाटक लिखे हैं। श्रीयुत जी० पी० श्रीवास्तव और पं० बदरीनाथ भट्ट के हास्यरसात्मक नाटक लोग पसंद करते हैं। राधाकृष्णदास, प्रतापनारायण मिश्र, देवकीनंदन त्रिपाठी, बालकृष्ण भट्ट, गणेशदत्त, राधाचरण गोस्वामी, चौधरी बदरीनारायण, गदाधर भट्ट, जानी बिहारीलाल, अंबिकादत्त व्यास, शीतलप्रसाद तिवारी, दामोदर शास्त्री, ठाकुरदयालसिंह, अयोध्यासिंह उपाध्याय, गदाधरसिंह, ललिताप्रसाद त्रिवेदी, राय देवीप्रसाद पूर्ण, बालेश्वरप्रसाद, महाराजकुमार खड्ग लालबहादुर मल्ल प्रादि कविगण इस समय के नाटककार हैं। शोक है कि इनमें कुछ महाशय अब नहीं हैं। बिहार-प्रांत में हिंदी-भाषी अन्य प्रांतों के देखते नाटक-विभाग बहुत दिनों से अच्छी दशा में है । स्वयं विद्यापति ठाकुर ने 'द्रहवीं शताब्दी में दो नाटक-ग्रंथ लिखे । लाल झा ने सं० १८३७ में गौरी-परिणय
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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