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मिश्रबंधु-विनोद
स्थान पर दिखलाया गया है, पर पूर्णबल से पहलेपहल खड़ी-बोली की पद्य-कविता सीतल कवि ने बनाई । इस महाकवि ने अपने 'गुल्जार-चमन' नामक ग्रंथ में सिवा खड़ी-बोली के और किसी भाषा का प्रयोग ही नहीं किया। इसके तीनों चमन मुद्रित हमारे पास हैं। सीतल के पीछे श्रीधर पाठक ने खड़ी-बोली की प्रशंसनीय कविता की, और महावीरप्रसाद द्विवेदी, अयोध्यासिंह उपाध्याय, मैथिलीशरण गुप्त, सनेही, बालमुकुंद गुप्त, नाथूरामशंकर, मन्नन द्विवेदी आदि ने भी इसी प्रथा पर अच्छी रचनाएँ की हैं। हमने भी 'भारतविनय'-नामक प्रायः एक सहस्र छंदों का ग्रंथ एवं एक अन्य छोटी-सी पुस्तक खड़ी-बोली में बनाई है। अभी कुछ कवि खड़ी-बोली में कविता नहीं करते और कुछ को इसमें उत्तम कविता बन सकने में अब भी संदेह है, पर इसकी भी उन्नति होने की अब पूर्ण प्राशा है।
थोड़े दिनों से हिंदी में उपन्यासों की बड़ी चाल पड़ गई है। इनसे इतना उपकार अवश्य है, कि इनकी रोचकता के कारण बहुत-से हिंदी न जाननेवाले भी इस भाषा की ओर झुक पड़ते हैं ! उपन्यासलेखकों में देवकीनंदन खत्री, गोपालराम, किशोरीलाल गोस्वामी, गंगाप्रसाद गुप्त आदि प्रधान हैं । इस समय प्रेमचंदजी के उपन्यास और कहानियाँ बहुत लोकप्रिय हैं।
नाटक-विभाग हिंदी में बहुत दिनों से स्थापित नहीं है और न इसकी अभी तक अच्छी उन्नति हुई है। सबसे पहले नेवाज कवि ने शकंतला नाटक बनाया, पर वह स्वतंत्र ग्रंथ नहीं है, बरन् विशेषतया कालिदास-कृत शकुंतला नाटक के आधार पर लिखा गया है। यह पूर्णरूप से नाटक के लक्षणों में भी नहीं पाता, क्योंकि इसमें यवनिकादि का यथोचित समावेश नहीं है। ब्रजवासीदास-कृत प्रबोधचंद्रोदय नाटक भी इसी तरह का है। केशवदास-कृत विज्ञानगीता भी नाटक