________________
मिश्रबंधु-विनोद देखो पूर्वालंकृत प्रकरण (५३५ ) संवत् १७५६ इनकी कविता तोष की श्रेणी की है। उदाहरणअंग भरसौहै छषि अधरन सौहैं,
चढ़ी आलस की भौं हैं धरे आमा रतिरोज की ; सुकबि कलस तैसे लोचन पगे हैं नेह,
जिनमैं निकाई अरुनोदय सरोज की। माछी छवि छाकि मंद-मंद मुसकान नागी,
बिचल बिलोकि तन भूषन के फोज की; राज रद मंडली कपोल मंडली मैं, मानो रूप के खजाने पर मोहर मनोज की।
(१३२३) खगनिया उन्नाव-ज़िल्ले में रणजीतपुरवा-नामक एक कस्बा है । इसी में बासूनामक एक तेली रहता था, जिसकी पुत्री खगनिया ने ग्रामीण भाषा में बहुत-सी अच्छी पहेलियाँ बनाई हैं । हैं तो ये बहुत ही साधारण भाषा में, परंतु इनमें कुछ ऐसा स्वाद है कि ये कविगण को भी पसंद भाती हैं । इसके समय का निरूपण हम नहीं कर सके हैं, उदाहरणार्थ इस स्त्री-कवि की तीन कहानियाँ हम नीचे लिखते हैं
आधा नर आधा मृगराज ; जुद्ध बिधाहे आवै काज । प्राधा दूटि पेट माँ रहै ; बासू केरि खगनिया कहै। (नरसिंहा) लंबी-चौड़ी आँगुर चारि ; दुहू ओर ते डारिनि फारि । जीव न होय जीव का गहै ; बासू केरि खगनिया कहै । (कंघी) भीतर गूदर ऊपर नाँगि ; पानी पियै परारा माँगि। तिहि की लिखी करारी रहै ; बासू केरि खगनिया कहै । (दावात) नाम-(१३२३ ) ख्यालीलाल । इनके छंद गोविंदगिल्ला
भाई के पुस्तकालय में हैं।