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________________ परिवर्तन प्रकरणा ; t प्रेम समुद्र बदै बलदेव के चित्त चकोर को चोप चला है काव्य सुधा बरषै निकलंक उदै जससी तुही चंद कला है ( द्विज गंग-कृत ) दमकत दामिनी लौं दीपति दुचंद 3 दुति, तैं दरसै श्रमंद मनि मंदिर के दर भाँति झरोखे चलि बाज ब्रजराजजू को, सारी सेव सुंदरि सरकि गई सर द्विज गंग अंग पर अलकेँ कुटिल लुरें, मुक्तमाल सहित सुधारे कंज कर तैं मानो कदयो चंद लै के पन्नग नछत्र बृ ंद, मंद-मंद मंजुल मनोज मानसर हैं । हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करेंगे । * ( २०८९ ) बिड़द सिंहजी ( उपनाम माधव ) ११४१ था । श्राप जाति के अलवर से मिले हैं, कविता सरस होती है। इनका जन्म संवत् १८६७ में अलवर के अंतर्गत किशुनपुर में हुआ चौहान हैं। आपके पूर्वजों को ३ गाँव दरबार जो अब तक इनके अधिकार में हैं । आपकी 1 उदाहरण कोयल कूकतै हुक हिए उठि है चपलान तैं प्रान डरेंगे 3 देखि कै बुंदन की झरि लोचन सोचन सों सुबान करेंगे । माधव पीव की याद दिवाय पपीहरा चित्त को चेत हरेंगे ; प्रीति छिपी अब क्यों रहिहै सखिए बदरा बदनाम करेंगे ॥ १ ॥ कलंक धरै पुनि दोष करै निसि मैं बिचरे रहि बंक हमेस ; उदै लखि मित्र को होत मलीन कमोदिनि को सुखदानि बिसेस | रखै रुचि माधव बारुनी की बपुरे बिरहीन को देत कलेस ; न जानिए काह विधारि बिरंचि धरयो यहि चंद को नाम दुजेस ॥२॥
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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