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मिश्रबंधु विनोद
( २०९० ) लखनेस
पांडे लक्ष्मणप्रसादजी उपनाम लखनेम कवि रीवा- नरेश महाराजा विश्वनाथसिंह के मंत्री पंडित बंसीधर पांडेय सरयूपारीण ब्राह्मण के पुत्र थे । ये पंडितजी महाराजा के बड़े ही कृपा पात्र थे और इन्हें सेनापति और मित्र का भी पद प्राप्त था। महाराजा विश्वनाथसिंहजी के पुत्र प्रसिद्ध कवि महाराजा रघुराजसिंहजी हुए । इन्हीं के श्राश्रय में लखने सजी रहते थे ।
इन्होंने संवत् १९२१ में रसतरंग नामक ११६ पृष्ठों का एक ग्रंथ कृष्णचरितामृत के गान में बनाया, जिसमें कुल मिलाकर ५७२ छंद हैं । यद्यपि यह कथाप्रासंगिक ग्रंथ है, तथापि इस रीति से बनाया गया है । कि श्रृंगाररस के अन्य काव्यों में इससे बहुत अंतर नहीं है । इसमें विविध छंद है, जैसे कि केशवदास की रामचंद्रिका में पाए जाते हैं, परंतु फिर भी सवैयानों और घनाक्षरियों का प्राधान्य है । इसकी भाषा व्रजभाषा की ओर अधिक झुकती है, यद्यपि इसमें अवध की भाषा भी मिल जाती है । ग्रंथारंभ में कवि ने अपने
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श्रयदाता को प्रशंसा की है, और फिर क्रमशः राजनगर और श्रीकृष्ण की उत्पत्ति से लेकर उद्धव-संदेश- पर्यंत कथा का अच्छा वर्णन किया है। रास का भी वर्णन बड़ा विशद हुआ है। इनकी कविता में जहाँ कहीं अलंकार अथवा रस आ गए हैं, वहाँ उनका नाम लिख दिया गया है । इन्होंने चित्र काव्य भी थोड़ा-सा किया है, और उसे भी एक प्रकार से कथा में ही सम्मिलित कर दिया है। इनकी भाषा अच्छी और कविता प्रशंसनीय है । भाषा में रीति काव्य और कथाप्रसंग बनाने की दो भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं, परंतु लखनेसजी ने उन दोनों को मिला दिया है। इनके ग्रंथ से कोरी कविता और कथा प्रसंग, दोनों का स्वाद मिलता है । इनका परिश्रम संतोषदायक है । हम इनको तोष कवि की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरण नीचे लिखते हैं
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