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________________ मिश्रबंधु -विनोद लोनी लरिकैया दै कैया मैं बलैया जाउँ, बैयाँ बैंयाँ चलत चिरैयाँ गर्दै धाय धाय । पीछे-पीछे मैया हेत लैया जैने गैया हाथ, मेवा मिठया गहि देतीं मुख नाय नाय ; वारें नोन रैया औध श्रानंद बदैया, मेरे निधनी के छैया दुलरात्रें गुन गाय-गाय ॥ ३ ॥ इनका राससर्वस्व हमने छत्रपुर में देखा है । उसमें १३ बढ़िया बंद हैं । ११३४ (२०५७) लविराम ब्रह्मभट्ट ये महाशय संवत् १८६८ में स्थान श्रमोदा, जिला बस्ती में उत्पन्न हुए थे । इनके पिता का नाम पलटनराय था । इनका एक २६ पृष्ठ का जीवन चरित्र डुमरावँ निवासी पंडित नकछेदी तिवारी ने लिखा है, जो हमारे पास वर्तमान है। दस वर्ष की अवस्था में लछिरामजी ने लासाचक, जिला सुलतानपूर-निवासी ईश कवि से काव्य सीखना आरंभ किया । सोलह वर्ष की अवस्था में ये श्रवध- नरेश महाराजा मानसिंह के यहाँ गए और उन्होंने कृपा करके इन्हें कविता में और भी परिपक्क किया। महाराजा साहब की इन पर उसी समय से बड़ी कृपा रहती थी । उन्होंने पीछे से इन्हें कविराज की पदवी भी दी और सदैव इनका मान किया । यों तो लछिरामजी बहुत-से राजाओं-महाराजाओं के यहाँ गए, परंतु ये महाराजा अयोध्या और राजा बस्ती को अपनी सरकार समझते थे । राजा सीतला बख़्शसिंह ( राजा बस्ती ) ने इन्हें ५०० बीघा का चरथी ग्राम, हाथी श्रादि भी दिया । इनका मान बड़े-बड़े महाराजाओं के यहाँ होता था और इन्होंने निम्न महाशयों के नाम ग्रंथ भी बनाए I १ मानसिंहाष्टक, २ प्रतापरत्नाकर ( महाराजा प्रतापनारायणसिंह अयोध्या नरेश के नाम ), ३ प्रेमरत्नाकर ( राजा बस्ती के नाम ),
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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