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परिवर्तन-प्रकरण
"३३ इनके विषय में बहुत-सी मज़ाक की बातें कही है । एक बार एक राजा ने इन्हें मखमली अचकन और पायजामा दिया, पर सर के लिये कोई वस्तु टोपी अादि का देना वह भूल गए । इस पर आपने कहा कि “वाह महाराज ! आपने मुझे ऐसा सिरोपाव दिया है कि घटा टोप।" इस पर लोगों ने झट टोप का भी घटा पूरा कर दिया। इनका काव्य प्रशंसनीय और सरस होता था। हम इन्हें पद्माकर कवि की श्रेणी में रक्खेंगे। उदाहरणबाटिका बिहंगन पै, बारि गात रंगन पै,
. वायु वेग गंगन पै बसुधा बगार है; बाँकी बेनु तानन पै, बँगले बितानन पै,
- बेस औध पानन पै बीथिन बजार है। बृदाबन बेलिन पै, बनिता नबेलिन पै,
ब्रजचंद केलिन पै बंसी बट मार है; बारि के कनाकन पै, बहलन बाँकन पै ,
बीजुरी बलाकन पै बरषा ‘बहार है॥१॥ चारो ओर राज औध राजै धर्मराजै,
दुसमन की पराजै है सदाजै खतरान की , ब्राह्मयच वासी भगवान ते उदासी कहैं,
बीबियाँ मियाँ है तुम्हें खता खफकान की। जानकी जहान की इमान की खराबी हाय,
डूबा मनसूवा तूबा कसम कुरान की; रामजी की सादी फिरगान की मनादी,
हिंदुवान की प्रबादी बरबादी तुरकान की॥ २॥ आई देखि गुय्याँ मैं नरेश अँगनैया जहँ,
खेलें चारौ भैया रघुरैया सुख पाय-पाय;