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मिनबंधु-विनोद चंदन चहल चोवा चाँदनी चंदोका चार,
घनो घनसार धेर सींच महबूबी के; अतर उसीर सीर सौरभ गुलाब नीर,
गजब गुजारे अंग अजब अजूबी के। फेरन फबत फैलि फूलन फरस तामैं,
फूज-सी फबी है बाल सुंदर सु खूबी के ; विसद बिताने ताने सामैं तहखाने बीच, बैठी खसखाने मैं खजाने खोलि खूबी के ॥४॥
(२०८३ ) मोहन इस नाम के चार कवि हुए हैं, जिनमें से हम इस समय चरखारीवाले मोहन का वर्णन करते हैं, जिन्होंने १९१६ में शृगारसागर नामक ग्रंथ बनाया । यह ग्रंथ हमने देखा है। इनकी कविता अच्छी होती थी। ये साधारण श्रेणी के कवि हैं। चंद-सो बदन चारु चंद्रमा-सी हाँसी परि
पूरन उमा-सी खासी सुरति सोहाती है। नीति प्रीति रीति रति रीति रस रीति गीत,
गीत गुन गीत सीन सुख सरसाती है। मोहन मसाल दीप माल मनि माल जाति, ___ जाल महताब बाब दुरि-दुरि जाती है; माछो अति अमल अनूप अनमोल तन,
अतन अतोल आमा अंग उफनाती है।
(२०८४ ) मुरारिदासजी कविराज ये सूरजमल कविराज के दत्तक पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १८९५ में, बूंदी में, हुआ और मृत्यु संवत् १६६४ में । ये संस्कृत, प्राकृत, डिंगल तथा हिंदी भाषा के अच्छे ज्ञाना और कवि थे। इन्होंने बूंदी-नरेश रामसिंहजी की प्राज्ञा से वंश-भास्कर को पूरा