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परिवर्तन-प्रकरण
१.१२१ विश्वनाथसिंहली सं० १९२० में राज्य पर थे। उसी समय यह भी विद्यमान थे। इनका कविताकाल १६२० के लगभग समझना चाहिए।
अमल अनार अरबिंदन को बूंद वारि,
बिबाफल बिद्रुम निहारि रहे तूलि-तूलि . गेंदा औ गुलाब गुललाला गुलाबास, श्राव
जामैं जीव जावक जपा को जात भूलि-भूनि । फेरन फबत तैसी पायन ललाई बोल,
इंगुर भरे से डोल उमड़त भूलि-यूलि ; चाँदनी-सी चंदमुखी देखौ ब्रजचंद उठे,
चाँदनी बिछौना गुलचाँदनी-सी फूलि-फूलि ॥१॥ गृहिन दरिद्र गृह-स्यागिन बिभूति दियो,
पापिन प्रमोद पुन्यवंतन छलो गयो; . : असित ग्रहेश कियो सनि को सुचित्त, लघु ।
ब्यालन अनंद शेष भारन दलो गयो। फेरन फिरावत गुनीन नित नीच द्वार,
गुनन विहीन तिन्हैं बैठे ही भलो भयो, कहाँ नौ गनाऊँ दोख तेरे एक प्रानन सों,
नाम चतुरानन पै चूकतै चलो गयो ॥२॥ जनम समै मैं ब्रज-रच्छन समै मैं, सजि
समर समै मैं ज्ञान यज्ञ जप जूट मैं ; देव देवनाथ रघुनाथ विश्वनाथ करी,
फूल जल दान बान बरखा अटूट मैं । फेरन विचारपो शुभ बृष्टि को बिचार यश,
पारिहू जनेन को प्रसिद्ध चारि खूट मैं ; अवध अकूट मैं गोबरधन कूट मैं,
सुतरन त्रिकूट मैं विचिन्न चित्रकूट मैं ॥३॥