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मिश्र बंधु - विनोद
चाल की न थाह जाकी पूरन विचारि कहै,
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पवन विमान बान गति तरसानी है नर लै समूह जूह भार लै अपार कूह, करत न रूह फेरि ताकी दरसानी है । ( २०८१ ) सीतारामशरण भगवानप्रसाद ( रूपकला ) आपका जन्म संवत् १८६७ में, सारन जिला के अंतर्गत गोवा परगने के सुबारकपूर ग्राम में, कायस्थ - कुल में हुआ । इन्होंने फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अँगरेज़ी की शिक्षा पाई । ये पहले ही शिक्षा विभाग के सब-इंस्पेक्टर नियत हुए। आप रामानंदी संप्रदाय के वैष्णव थे । इन्होंने सन् १८६३ ई० तक बहुत योग्यता के साथ असिस्टेंटइंस्पेक्टरी का काम किया । उस समय आपका मासिक वेतन ३०० ) था । इसी समय आपने पेंशन ले ली । आपके कोई संतान न थी, गृहिणी का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था और चित्त में भगवद्भक्ति तथा वैराग्य की मात्रा पहले ही से अधिक थी, श्रतः पेंशन लेने के पश्चात् श्राप श्रीअयोध्याजी में जाकर साधुनों की तरह वास करने लगे । इनके बनाए कुल १३ ग्रंथ हैं, जिनमें से ४ उर्दू के हैं और शेष 8 हिंदी के। आप बड़े ही मिलनसार तथा सरल हृदय और भक्त हैं । आपके रचित ग्रंथों के नाम ये हैं- १ तन मन की स्वच्छता, २ शरीर पालन, ३ भागवत गुटका, ४ पीपाजी की कथा, ५ भगवद्वचनामृत, ६ भक्तमाल की टीका, ७ सीताराममानसपूजा, ८ भगवन्नामकीर्तन, ६ श्रीसीतारामीय प्रथम पुस्तक, १० मीराबाई की जीवनी | ( २०८२ ) फेरन
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इनका जन्म-स्थान, समय इत्यादि कुछ ज्ञात नहीं है, परंतु इनकी कविता से विदित होता है कि ये महाराज विश्वनाथसिंहजी बांधव नरेश के कवि थे । कविता इनकी सारगर्भित और प्रशंसनीय है। हम इनकी गणना तोष कवि की श्रेणी में करते हैं। महाराजा