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________________ परिवर्तन-प्रकरण . बहुत थी, और जाना-माना भी बहुधा रहता था । लेखराजजी इनसे ३ वर्ष बड़े थे। इन कारणों एवं स्वभावतः रुचि होने से आपका कविता की ओर भी रुझान हो गया और सैकड़ों छंद बन गए, पर पीछे से व्यापार में विशेष रूप से पड़ जाने के कारण भापकी कवितारचना बिलकुल छूट गई, यहाँ तक कि प्राचीन छंदों के रक्षित रखने का भी आपने प्रयत्न न किया । फिर भी प्राचीन कवियों के ग्रंथ देखने की रुचि श्रापकी वैसी ही रही । और हम लोगों को काव्य-तस्व बताने में आप सदैव चाव रखते रहे। आपकी रचना में अब केवल थोड़ेसे छंद सुरक्षित हैं, जिनमें से उदाहरण-स्वरूप दो छंद यहाँ लिखे जावेंगे। आपके चार पुत्र और दो कन्याएँ दीर्घजीवी हुई खेद है कि अब आपके बड़े पुत्र और बड़ी कन्या का देहांत हो गया है। शेष छोटे तीन पुत्र इस इतिहास-ग्रंथ के लेखक हैं। विशाल कवि आपके छोटे जामात थे । इनकी बड़ी पुत्री के दो पुत्र हैं, जिनमें छोटा भाई अनंतराम वाजपेयी गद्य-लेखन का बड़ा उत्साही है। वह कोआपरेटिवसोसाइटी में नौकर है । इनका पौत्र लक्ष्मीशंकर मिश्र बैरिस्टर है। वह भी कुछ-कुछ छंद बनाने और गद्य लिखने में रुचि रखता है। आप कविता में अपना नाम पूर्ण अथवा पूरन रखते थे। उदाहरणलान-से लाल बने ग लाल के, जावक माल बिसाल रह्यो फबि; स्यों अधरान मैं अंजन लीक है, पीक भरे कहि देत महाबि । पीत पटी बदली कटि मैं लखि, नारि सकोच नहीं सो रही दबि; पूरन प्रीति की रीति यही पिय, दच्छिन झूठ कहैं तुमको कवि । पानी धूम इंधन मसाला संग भातस के, हिकमति कोठरी अनूप हहरानी है; उठत प्रभंजन के धन घहरात ठौर ठौर ठहरात जात जोर की निसानी है।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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