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________________ १०६० मिश्रबंधु-विनोद कवि) और रसिकविहारी-नामक तीन पुत्र हुए, जो अब तीनों ही स्वर्गवासी हो गए । इनके तीनों पुत्र कविता में पूर्णज्ञ हुए और प्रथम दो ने उत्कृष्ट कविता भी की। हमारे पिता के ये महाशय मित्र थे और इनके पितामह हमारे पितामह के विमात्र भाई थे। हमको कविता की बहुत बातें ये महाशय बताया करते थे। इनको गणना हम किसी श्रेणी में नहीं कर सकते। उदाहरण राति रतिरंग पिय संग सो उमंग भरि, ____ उरज उतंग अंग-अंग जंबूनद के ललकि ललकि लपटात लाय-लाय उर, बलकि-बलकि बोल बोलत उलद के। लेखराज पूरे किए लाख लाख अभिलाष, लोयन लखात लखि सूखे सुख स्वद के ; दोऊ हद रद के सुदेत छद रद के, बिबस मैन मद के कहै मैं गई सदके । गाजि कै घोर कढ़ो गुफा फोरिक पूरि रही धुनि है चहुँ देस री; दोऊ कगार बगारिकै पानन पाप मृगान को खात जु बेसरी । तापै अघात कबौ न लख्यो गनि नेकु सकै नहिं सारद सेस री; सो लेखराज है गंग को नोर जो अद्भुत केसरी बेसरी केसरी। (१८२०) रघुवरदयाल ये महाशय मध्यप्रदेशांतर्गत दुर्ग जिला रायपूर के वासी थे । इन्होंने संवत् १९१२ में छंदरत्नमाला-नामक एक ग्रंथ बनाया, जिसमें प्रत्येक छंद का लक्षण तथा उदाहरण उसी छंद में कह दिया । इनकी भाषा संस्कृत-मिश्रित है और कहीं-कहीं इन्होंने श्लोक भी कहे हैं। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर १६२ छंद हैं । ये महाशय अच्छे पंडित थे। हम इन्हें साधारण श्रेणी में रक्खेंगे।
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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