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________________ परिवर्तन-प्रकरण मालती सवैया उदाहरण ; सुंदर सात निवास जहाँ गण इंदु अमंगल कर्ष लिवैया है पुन कर्ण सबै पद अंतनि मो मन नाचत मोद दिवैया । तेइस वर्ण पदक शुभ्राजत यो बिधि चारिहु चर्ण रचैया ; काव्य चिच्छन ते सुक हैं यह लच्छन मालति छंद सवैया । ( १८२१ ) ललितकिशोरी साह कुंदनलाल १०६१ ( १८२२ ) तथा ललित माधुरी साह फुंदनलाल इनका जन्म-स्थान लखनऊ था । ये जाति के वैश्य प्रसिद्ध साह विहारीलालजी के पौत्र थे । ये संवत् १६१३ में श्रीवृंदावन चले गए और वहाँ गोस्वामी राधागोविंदजी के शिष्य हो गए । संवत् १६१७ में इन्होंने वृंदावन में प्रसिद्ध साहजी का मंदिर बनवाना आरंभ किया, जिसकी स्थापना सं० १९२५ में हुई । सं० १६३० कार्तिक शु० २ को इनका स्वर्गवास हुआ । इन्होंने कई बड़े-बड़े ग्रंथ निर्मित किए, जिनका वर्णन नीचे किया जायगा । उनमें विषय प्रायः एक ही है । सबमें श्रीकृष्णचंद्र का अष्टयाम या समयप्रबंध विशेषतया वर्णित है । समय प्रबंध व अष्टयाम में यह भेद है कि अष्टयाम में श्रीकृष्णचंद्रजी के हर घड़ी और पहर का शृंगारपूर्ण वर्णन है और समयप्रबंध में दिन की पृथक्-पृथक् पूजा और उपासनाओं का सविस्तर कथन है । इसके अतिरिक्त श्रीकृष्णजी की विविध लीलाओं का वर्णन भी इन्होंने विस्तारपूर्वक किया है । श्रीसूरदासजी के व इन लोगों के कथनों में यह भेद है कि सूर ने सूक्ष्मतया समस्त भागवत की और मुख्यतया पूर्वार्द्ध दशम स्कंध की कथाएँ कही हैं, जिससे उनके ग्रंथ में विविध विषय आ गए हैं, परंतु इन लोगों ने सिवा व्रज-वर्णन के और कुछ भी नहीं कहा, और उसमें भी कृष्ण की बाल लीला इत्यादि की -कथाएँ छोड़ दी हैं । इस कारण इनके कथनों में सिवा प्रेमालाप,
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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