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________________ परिवर्तन-प्रकरण १०२६ इनकी पितामही लखनऊ के वाजपेयियों के घराने की थीं । उनके मातामह भट्टाचार्य पाँड़े थे जो अवध के बादशाह के यहाँ से इलाहाबाद प्रांत के शासक नियत थे । जब वह प्रांत अँगरेज़ों को मिल गया तब वह लखनऊ में रहने लगे। उनके दोनों पुत्र बड़े विख्यात चकलेदार थे । इनके यहाँ करोड़ों की संपत्ति थी । कोई अन्य उत्तराधिकारी न होने से लेखराज की पितामही इस संपत्ति की उत्तराधिकारिणी हुईं। इनका महल वहीं था जहाँ अब विक्टोरिया पार्क बना हुआ है । समय पाकर यह सब धन लेखराज के हाथ आया और ये महाशय सुखपूर्वक लखनऊ में रहते रहे । संवत् १६१४ वाले सिपाही विद्रोह की गड़बड़ में इन्हें लखनऊ से बाहरी ज़िमींदारी गँधौली जिला सीतापुर में सब संपत्ति छोड़ कुछ दिनों को भाग जाना पड़ा । दैववश विद्रोहियों ने इनका महल खोदकर सघ प्रज्ञाना तथा माल असबाब रक्षकों के रहते हुए भी लूट लिया । इनके हाथ जो कुछ धन ये ले गए थे वही लगा और गँधौली तथा सिंहपूर की ज़िमींदारी इनके पास रह गई। फिर भी ये महाशय ऐसे शांतचित्त और संतोषी थे कि कभी यह इस आपत्ति का नाम भी नहीं लेते थे । I इनको कविता का सदैव शौक रहा और बहुत प्रकार के उत्तम पदार्थ अपने हाथ से ये बना सकते थे । इनके यहाँ कविगण प्रायः आया करते थे । ये तथा इनके अनुज बनवारीलाल काव्य के पूर्ण ज्ञाता थे । इन्होंने रसरत्नाकर ( नायिकाभेद ), राधानखशिख, गंगाभूषण श्रौर लघुभूषण- नामक चार ग्रंथ बनाए थे । गंगाभूषण में इन्होंने गंगाजी की स्तुति में ही सब श्रलंकार निकाले हैं । लघुभूषण में बरवै छंदों द्वारा अलंकारों के लक्षण तथा उदाहरण कहे गए हैं । इन ग्रंथों के अतिरिक्त स्फुट छंद बहुत हैं । इनका शरीरपात काशीजी में मणिकर्णिका घाट पर शिवरात्र के दिन संवत् १६४८ में हुआ । इनके लालविहारी ( द्वजराज कवि ) जुगुल किशोर ( ब्रजराज
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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