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________________ मिश्रबंधु विनोद पूरन गंभीर धीर बहु बाहिनी को पति, धारत रतन महा राखत प्रमान है। जखि दुजराज करै हरष अपार मन, . पानिप विपुल अति दानी छमावान है। सुकवि गुलाब सरनागत अभयकारी, हरि उरधारी उपकारी हू महान है; बलाबंध शैलपति साह कवि कौल भानु, रामसिंह भूतलेंद्र सागर समान है ॥ १ ॥ मृदुता बलाई माँहि पल्लव कतल करें, ___ सुचिसुभतानें करे कमल निकाम हैं; लाली ने लुटाय दियो लालन प्रबालन को, सुखमानै सोखे थल कमल तमाम हैं। सुकवि गुजाब तो सी तुही है तिलोक माँह, सुमिरत तोहि घनश्याम पाठौ जाम हैं; कीरति किसोरी तेरी समता करै को श्रान, चरन कमल तेरे कमला के धाम हैं ॥२॥ छैहैं बकमंडली उमड़ि नभ मंडल मैं, जूगुनू चमक ब्रजनारिन जरैहैं री; दादुर मयूर झीने झींगुर मचैहैं सोर, दौरि-दौरि दामिनी दिसान दुख दैहै री। सुकवि गुलाब हैहैं किरचै करेजन की, चौंकि-चौंकि चोपन सों चातक चिचैहैं री; हंसिनि लै हंस उदि जै हैं रितु पावस मैं, .. ऐहैं घनश्याम घनश्याम जो न ऐहैं री ॥३॥ (१८१८ ) बाबा रघुनाथदास रामसनेही इन महाशय ने संवत् ११११ विक्रमीय में विश्रामसागर-नामक
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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