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________________ परिवर्तन-प्रकरण १०१७ एक बृहत् ग्रंथ बनाया। ये महाशय रामानुज संप्रदाय के महंत थे। इस संप्रदाय के महंत गोविंदराम अग्रदास के द्वारा में हुए । उनके शिष्य संतराम, उनके कृपाराम, उनके रामचरण, उनके रामजन, उनके कान्हर और उनके हरीराम हुए । रघुनाथदास के गुरु देवादासजी इन्हीं महात्मा हरीरामजी के शिष्य थे। इन्होंने फकीर होने के प्रतिरिक्त अपने कुल गोत्र आदि का कुछ ब्योरा नहीं लिखा है । ये सब महात्मा अयोध्या में बड़े महंत थे। अयोध्या में रामघाट के रास्ते पर रामनिवास-नामक एक स्थान है। उसी पर ये लोग रहते थे और उसी स्थान पर इस महात्मा ने यह ग्रंथ बनाना प्रारंभ किया । इन्होंने भाषा का लक्षण और अपने ग्रंथ का संवत् इस प्रकार कहा है संस्कृत प्राकृत फारसी, बिबिध देस के बैन । भाषा ताको कहत कवि, तथा कीन्ह मैं ऐन । संवत् मुनि वसु निगम शत, रुद्र अधिक मधु मास ; शुक्ल पक्ष कवि नौमि दिन, कीन्हीं कथा प्रकास । विश्रामसागर रायल अठपजी आकार में छपा हुआ ६१३ पृष्ठों का एक बड़ा ग्रंथ है। इसमें तीन प्रधान खंड हैं, अर्थात् पृष्ठ २८६ तक इतिहास, ३७४ तक कृष्णायन और ६०८ तक रामायण । इसके पीछे पृष्ठ ६१३ तक प्रश्नावली है । प्रथम खंड में मंगलाचरण के अतिरिक्त नारद, कृष्णदत्त, वाल्मीकि, गज, गणिका, यवन, अजामिल, यमदूत, वधिक कपोत, यमपुरी, कर्मविपाक, सुबर्ता, गौतमी सुबर्ता, मुद्गल, बीरभद्र, हरिश्चंद्र, सुधन्वा, शिवि, देवदत्त, सुदर्शन, बहुला, मोरध्वज, ध्रुव, प्रह्लाद, नृसिंह, ब्रह्मा, अयोध्या, स्वायंभुव मनु, ससद्वीप नवखंड, गंगा-उत्पत्ति, एकादशी-तुलसी, युधिष्ठिर-यज्ञ, जाजुल्य तुलाधार, मक्की दत्तात्रेय, पितापुत्र, शयनजीत, सत्संग, अंबरीष, चंद्रहास, संतलक्षण, कास नवधा भक्ति और षट्शास्त्र का वर्णन है। द्वितीय में कृष्ण की उत्पत्ति से लेकर रुक्मिणी-विवाह और प्रद्यम्न
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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