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मिश्रबंधु-विनोद कवियों का सदैव अच्छा मान करते थे। अपने पुत्र रघुराजसिंह के जन्मोत्सव में आपने सोने की ज़ंजीर समेत एक भारी हाथी दे डाला था।
महाराजा रघुराजसिंह का जन्म संवत् १८८० में हुआ था और अपने पिता के स्वर्गवास पर आप सं० १६११ में गद्दी पर बैठे। आपकी मृत्यु १६३६ में हुई । आपके बारह विवाह हुए थे। श्राप पूर्ण पंडित, हिंदी और संस्कृत के अच्छे कवि और मगयाव्यसनी थे। आपने अनेकानेक छोटे-बड़े ग्रंथ बनाए और ११ शेर, एक हाथी, १६ चीते और हज़ारों अन्य मृग भी अपने हाथ से मारे । आप बड़े दानी और भारी भक्त भी थे और २०००० विष्णुनाम नित्यप्रति जपते थे । उपयुक्त बातों में समय अधिक लगाने के कारण आप राज्यप्रबंध कम कर सकते थे। मरणकाल के ५ वर्ष पूर्व आपने राज्यप्रबंध बिलकुल छोड़ दिया और अँगरेजी सरकार की ओर से प्रबंध होने लगा । सिपाहीविद्रोह में आपने सरकार का साथ दिया था। रीवाँ के वर्तमान महाराजा का जन्म सं० १९३३ में हुआ।
महाराजा रघुराजसिंहजी बड़े ही कवितारसिक और कवियों के कल्पवृक्ष हो गए हैं। इन्होंने कविता प्रकृष्ट बनाई है। इनके रचे हुए ग्रंथों के नाम ये हैं
सुंदरशतक (सं० १६०३ ), विनयपत्रिका (१९०६), रुक्मिणीपरिणय ( १९०६ ), श्रानंदांबुनिधि (१९१०), भक्तिविलास (१९२६), रहस्यपंचाध्यायी, भक्तमाल , राम-स्वयंवर ( १९२६), यदुराजविलास (१९३१), विनयमाला, रामरसिकावली ( १६२१), [ खोज १०६४ ] गद्यशतक, चित्रकूट-माहात्म्य, मृगया-शतक, पदावली, रघुराजयिलास, विनयप्रकाश, श्रीमद्भागवत-माहात्म्य, रामअष्टयाम, भागवत-भाषा, रघुपतिशतक, गंगाशतक, धर्मविलास, शंभुशतक, राजरंजन, हनुमतचरित्र, भ्रमर-गीत, परमप्रबोध और जगन्नाथशतक । [खोज १६०४ ] इनमें से सब ग्रंथ इन्हीं महाराज ने नहीं बनाए हैं, किंतु