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परिवर्तन-प्रकरण
१०४७ दो-एक के कुछ भाग इन्होंने स्वयं रचे और कुछ उनके आश्रित कवीश्वरों ने बनाए, जिनके नाम रसिकनारायण, रसिकविहारी, श्रीगोविंद, बालगोविंद, और रामचंद शास्त्री हैं। इन लोगों का पता इनके लिखित ग्रंथों तथा नागरीप्रचारिणी-सभा के खोज की रिपोर्ट [१६०० ] से लगा है । इनमें से कई ग्रंथ बहुत बड़े-बड़े हैं।
इनकी कविता बहुत विशद और मनमोहनी होती है। इन्होंने विविध छंदों में कविता की है। उपर्युक्त ग्रंथों में से कई हमने देखे हैं।
रुक्मिणीपरिणय में रास, शिखनख, जरासंध और दंतवक्र के युद्ध अच्छे हैं । फाग आदि भी बढ़िया कहे गए हैं ।
ये महाराज राम के भक्त थे, सो इनका रामाष्टयाम रुक्मिणीपरिणय से बढ़कर है । इनकी भक्ति दास भाव की थी। इनकी कविता में छंदों की छटा और अनुप्रास दर्शनीय हैं, सथा युद्ध, मृगया और भक्ति के वर्णन सुंदर हैं । ये परम प्रशंसनीय कवि थे। इनके अनेकानेक ग्रंथ बड़े ही सुंदर हैं।
अनल उदंड को प्रकाश नव खंड छायो,
ज्वाला चंड मानो ब्रहमंड फोरै जाय-जाय ; पुरी ना लखात ज्वालमालै दरसाति एक,
लोहित पयोधि भयो छावा एक छाय-छाय । देवता मुनीस सिद्ध चारण गंधर्ब जेते,
मानि महापले वेगि व्योम ओर धाय-धाय; देखि रामराय हेत दीन्ही लंक लाय सबै,
चाय भरे चले कपि राय यश गाय-गाय ॥१॥ बसुधा धर मैं बसुधा धर मैं त्यौं सुधाधर मैं त्यौ सुधा मैं लसै; अलि बुंदन मैं अलि बूंदन मैं अलि बूंदन मैं अतिसै सरसै। हिय हारन मैं हर हारन मैं हिमि हारन मैं रघुराज बसै ; ब्रज बारन बारन बारन बारन बारन बार बसंत बसै ॥२॥
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