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________________ १.४३ परिवर्तन-प्रकरण तरु भवसागर को भजि के बजि कै अघ औगुन ते उरु रे . परतापकुँवारि कहै पदपंकज पाव घरी जनि बीसरे । होरी खेलन की रितु भारी ॥ टेक ॥ नर तन पाय भजन करि हरि को है औसर दिन चारी। अरे अब चेतु अनारी। ज्ञान गुलाल अबीर प्रेम करि प्रीत तणी पिचकारी ; सास उसास राम रँग भरि-भरि सुरति सरी सी नारी । खेल इन संग रचारी। सुलटो खेल सकज जग खेलै उलटो खेल खेलारी; सतगुर सीख धारु सिर ऊपर सतसंगति चलि जारी। __ भरम सब दूरि गँवारी। ध्रुव पहलाद विभीखन खेले मीराँ करमा नारी ; कहे प्रताप कुँवरि इमि खेले सो नहिं आवै हारी। सीख सुनि लेहु हमारी। ( १८०७ ) महाराजा रघुराजसिंहजू देव जी० सी० एस्० आई० रीवाँ-नरेश रीवाँ-नरेशों में महाराजा जयसिंह, उनके पुत्र महाराजा विश्वनाथ सिंह और तत्पुत्र महाराजा रघुराजसिंह तीनों बहुत अच्छे कवि थे। ये महाराजागण बघेल ठाकुर थे। महाराजा वीरध्वज सोलंकी के पुत्र महाराजा व्याघ्रदेव ने गुजरात से आकर भोरों, गोडों, लोधियों आदि से बघेलखंड जीतकर वहाँ शासन जमाया। कहते हैं कि इस कुटुंब के पूर्व पुरुष ब्रह्मचोलक अंजली के पानी एवं सूयींश से उत्पन्न हुए थे और इसीलिये सूर्यवंशी कहलाए । ब्रह्मचोलक से करणशाह पर्यंत ५०७ पुश्तेंचोलकवंशी कहलाती रहीं। करणशाह का पुत्र सुलंकदेव हुआ। तब से वीरध्वज पर्यंत १८२ पीढ़ियाँ सोलंकी कहलाई। वीरध्वज के पुत्र
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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