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________________ १०३२ मिश्रबंधु-विनोद इनका तृतीय ग्रंथ है और उसी में उपर्युक्त बातों का वर्णन है । यह रंगतरंग संवत् १८६६ में सबसे पीछे बना था। नवीन कवि ने इस ग्रंथ में रसों का वर्णन किया है । इसमें अनुप्रासों का बाहुल्य है । इस कवि की कविता-शैली पद्माकर से बहुत कुछ मिलती है, और उत्तमता में भी उसी कवि के समान है। इस कवि की रचना बहुत ही प्रशंसनीय है । हम इन्हें पद्माकर की श्रेणी में रखते हैं । उदाहरणार्थ इनके कुछ छंद नीचे लिखे जाते हैं राजै गजराज ऐसे दारुन दराज दुति, जिनकी गराज परै बैरी के तहलके ; सुंडादंड मंडित जंजीर झकझोरै गुन, जीरन लौं तो जे झरैया मद जल के। श्रीमनि नरिंद मालवेंद्र देव इंद्रसिंह, तेरी पौरि पेखिए हजारन के हलके ; अोज के सिँगार बड़ी मौज के सिंगार, निज फौज के सिँगार जैतवार पर-दल के ॥३॥ सूरज के रथ के से पथ के चलैया चारु, न थके थिराहिं थान चौकरी भरत हैं; फाँदत अलंगैं जब बाँधत छलंगैं, जिन जोनन ते जाहिर जवाहिर झरत हैं। मालवेंद्र भूप की सवारी के अनूप रूप, गौन मैं दपेटि पौनहू को पकरत हैं ; करि-करि बाजी जिन्हैं लाजै चपलाजी देखि, तेरे तेज बाजी पर-बाजी-सी करत हैं ॥ २ ॥ चपक के चौसर चमेलिन की चंपकली, गजरे गुलाबन के गलते उमाह के ; कदम तरौना तरे किंजलक झूमका की,
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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