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________________ · परिवर्तन-प्रकरण प्रचलित हैं, सो हमने उत्कृष्ट उदाहरण ढूँढ़ने का श्रम भी नहीं किया। इनकी भाषा साधारण बोल-चाल को लिए हुए बड़ी ज़ोरदार है । हम इनको पद्माकर कवि की श्रेणी में रखते हैं । संवत् १९३० के लगभग तक ये विद्यमान थे । इनका कविताकाल संवत् १६०० से १६३० तक समझना चाहिए । इनका हाल इनके मिलनेवालों ने सरायमीरा में हमसे कहा था। उदाहरण किया पिय किन सौतिन घर बास ; बिकल उन बिन जिय बारह मास । गरज अाली असाढ़ पाया ; घटा ना ग़म दुख दिखलाया। अबर हो बर बिदेस छाया. ; कहीं बरसा कहिं तरसाया ॥१॥ जोबन पर जिसके शम्सोकमर वारी है; हर गुल्शन में उस गुल की गुलज़ारी है। जंजीर जुल्फ़ जाना ने लटकाली है; काली है फ़िदा जिस पर नागिन काली है। अबरू कमान क़ुदरत ने परका की है। वह आँख, आँख पाहू ने झपका ली है। बदन ससि मदनभरी प्यारी ; अदा की बाँकी ब्रजनारी । सीस धर गोरस की गगरी रूप रस जोबन की अगरी। बजा छमछम पायल पगरी ; गई ग्वालिनि गोकुल-नगरी ॥२॥ (१७९५ ) नवीन ये महाशय नाभा-नरेश महाराजा देवेंद्रसिंहजी के यहाँ थे। इन्होंने अपने को ब्रजवासी कहा है, परंतु कुल-कुटुंब का कुछ भी हाल नहीं लिखा । इन्होंने नाभा-नरेश के यहाँ गज, ग्राम एवं रुपया-पैसा सभी कुछ पाया । इनका वहाँ पूरा सम्मान हुआ । इन्होंने महाराजा साहब की प्राज्ञा से भाषा-साहित्य के सुधासर, सरसरस, नेहनिदान [ खोज १६०५ और रंगतरंग-नामक चार ग्रंथ बनाए । हमारे पास
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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