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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/88 डी-आफीसिस को छोड़कर अन्य कोई ऐसी प्राचीन कृति नहीं है, जिसने प्राचीन नैतिक ज्ञान को मध्यकालीन एवं आधुनिक यूरोप तक पहुंचाया हो, फिर भी, नैतिक सिद्धांतों के विकास में सिसरो का महत्व अपेक्षाकृत कम ही है, क्योंकि उसने किसी वस्तुतः स्वतंत्र दार्शनिक विचारों का प्रतिपादन कभी कभार ही किया है। सामान्यतया वह बहुत अधिक विनम्र ही रहा है। उसका निम्न कथन भी उसकी इस विनम्रता का ही समर्थन करता है। वह कहता है कि उसने अपने देशवासियों के समक्ष रोगी की वेशभूषा में ग्रीक दर्शन को प्रस्तुत किया है। वह अपने आप को संशयवादी अकादमी का अनुयायी मानता है, किंतु नीतिशास्त्र के क्षेत्र में उसकी निष्ठा यह है कि सद्गुण सुख प्रदान करने वाला तत्त्व है। इस मान्यता के पूर्ण या आंशिक विरोध को वह आवश्यक नहीं मानता है। उपरोक्त रचना के (बाह्य) कर्तव्य सम्बंधी भाग की विषयवस्तुस्टोइक विचारक पेनेटिअस से ली गई है, जिसे स्टोइकवाद के समन्वयात्मक पक्ष की व्यावहारिक शिक्षाओं का प्रतिरूप माना जा सकता है। अब हम इस सिद्धांत के मुख्य लक्षणों और इसके उस प्रारूप की चर्चा करेंगे, जो कि चार मुख्य सद्गुणों की पुरातन शैली के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। (1) प्रज्ञा के क्षेत्र की विवेचना करते हुए अरस्तू की इस बात को मान लिया गया है कि ज्ञान का लक्ष्य ज्ञान स्वयं ही है (अर्थात् ज्ञान स्वतःसाध्य है), यद्यपि उसे चिंतन की क्रिया के अधीन ही माना गया है। (2) कठोर न्याय को जो कि मनुष्यों को परस्पर अकारण नुकसान पहुंचाने से रोकता है तथा सम्पत्ति का सम्मान और संविदाओं का पालन करना सिखाता है, परोपकार या उदारता के समानांतर, किंतु उससे भिन्न रखा गया। यह ऐसी सभी सेवाओं के प्रस्तुतिकरण में अभिव्यक्त होता है, जो कि बिना किसी त्याग के हो सके और यह हमें देश के नागरिकों, कुटुम्बीजनों, मित्रों, शुभ चिंतकों और राष्ट्र के साथ अधिक व्यापक रूप से घनिष्ठ एकता के सूत्र में बांधता है। (3) साहस (धैर्य) या आत्म की महानता के शीर्षक के अंतर्गत दो अलग-अलग गुण अनुकरणीय माने गए हैं। बाह्य वस्तुओं एवं तथ्यों के प्रति दार्शनिक उदासीनता और वह आत्मशक्ति, जो मनुष्य को कठिन एवं साहसिक कार्यों की ओर ले जाती है उनके प्रति आकर्षण उत्पन्न करती है। (4) अंत में चौथा सद्गुण आता है, जो मर्यादितता और औचित्यता की उपलब्धि में पाया जाता है और जो व्यापक अर्थ में सभी सद्गुणों का सहयोगी है और उनका ही एक पक्ष है। पुनः यह ध्यान देने योग्य है कि नीतिशास्त्र की सामान्य विवेचना में पेनेटिअस के द्वारा प्रस्तुत स्टोइकवाद अपनी नैतिक शुभता से भिन्न सामान्य अर्थ में आचरण की