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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 79 प्रशांत मनः स्थिति और कठिनतम दुःखों में मन की निराकुलता अधिकांश लोगों के लिए स्टोइकवाद का प्रमुख आकर्षण रही है।
इस प्रकार हम यह भलीभांति कह सकते हैं कि एक ही प्रकार के 'आनंद' के लिए स्टोइको एवं इपीक्यरीयनो ने मानव जाति को परस्पर विरोधी विचार दिए है। फि र भी जीवन में आने वाले परिवर्तनों एवं संयोगों से ऊपर उठकर मन की शांत स्थिति के लिए अपेक्षित (मानसिक) स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए, इच्छा की दार्शनिक विशेषता दोनों ही विचारधाराओं में समान रूप से पाई जाती है। यद्यपि स्टोइक इस सम्बंध में अधिक सबल दावा प्रस्तुत करते हैं, 38 उनके आदर्श मनीषी का शुभ (कल्याण) न केवल बाह्य वस्तुओं और शारीरिक स्थितियों से ही स्वतंत्र है, वरन्काल की सीमा रेखा से ऊपर भी है। मात्र प्रज्ञा के अभ्यास में ही इस शुभ की सम्पूर्ण सिद्धि निहित है। उसे कालावधि के आधार पर बढ़ाया नहीं जा सकता है । यद्यपि यह विरोधाभास तीव्र है, किंतु यह स्टोइकवाद की आत्मा के साथ पूर्ण संगति रखता है। हम यह जानकर और भी अधिक आश्चर्यचकित होते हैं कि इपीक्यूरीयन मनीषी भी स्टोइक मनीषी के समान ही संकटों में भी आनंदित होगा। उसका आनंद भी पूरी तरह से अंतर्दृष्टि और सम्यक् विचार पर निर्भर रहता है। भाग्य का उसके साथ कुछ भी सम्बंध नहीं है, उसका मन जीवन की स्वाभाविक सीमाओं को जान चुका होता है, अतः वह समय की सीमितता में भी अक्षुण्ण रहता है। इस प्रकार संक्षेप में मानवीय अस्तित्व की स्थितियों से अपूर्णता का निरसन करने में इपीक्यूरियस भी झेनो से कोई कम कठिन प्रयास नहीं करते हैं। यही विशेषता इपीक्यूरीयनवाद और अरिस्टीपास के स्थूल सुखवाद के मुख्य अंतर की कुंजी है। स्थूल सुखवाद मनुष्य के परम साध्य को गवेषणा का अत्यंत सरल एवं स्पष्ट उत्तर देता है। किंतु इसके अतिरिक्त जब वह अबाध गति से एवं समान रूप से विकसित होता है, तो सामान्य नैतिक चेतना पर आघात करने के लिए उत्तरदायी होता है, वह (नैतिकता की रक्षा करने में एवं उसे पूर्णता प्रदान करने में सर्वसम्मति से असफल हो जाता है। जैसा कि अरस्तू ने कहा है 'मनुष्य का दैवीयकरण ही उसका शुभ है। 39
ग्रीक दृष्टिकोण में दर्शन को शुभ जीवन के विज्ञान के साथ ही साथ शुभ जीवन जीने की कला भी मान लिया गया था और सुखवादी दर्शन सुख को साधारण अर्थ में ग्रहण करने पर सुख प्राप्ति की अनिश्चित एवं अनाचाही कला ही सिद्ध करती है। दार्शनिक चिंतन की प्रवृत्ति चिंतक की आत्म चेतनता के विकास द्वारा अक्सर इस