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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 77 के कर्त्तव्यों के विवरणों में पूरी तरह स्वीकार की गई है। वस्तुतः उनके द्वारा न्याय के स्वाभाविक सिद्ध करने का आधार यह है कि मनुष्य की मानसिक एवं दैहिक संरचना में इस बात के प्रमाण हैं कि उसका जन्म स्वयं के लिए नहीं वरन् मनुष्य जाति के लिए हुआ है। स्टोइकों की रचनाओं में व्यावहारिक नैतिकता के सम्बंध में महत्वपूर्ण विवेचन मिलता है। तथापि यहां हमें मुख्य रूप से स्वाभाविक शब्द के दो अर्थ दिखाई देते हैं प्रथम अर्थ यह है कि जिसका अस्तित्व वस्तुतः सभी जगह या अधिकांश भाग में है और दूसरा अर्थ यह है कि जो अस्तित्व बना लेगा यदि मनुष्य के जीवन की मूलभूत योजना का पूरी तरह पालन किया जाता है। हम देखते हैं कि स्टोइकों ने इन दो पहलुओं के मध्य स्पष्ट समन्वय करने का कोई प्रयास नहीं किया है। अरस्तू ने हमें ताया था कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से एक राजनीतिज्ञ प्राणी है। स्टोइकों के स्वभाव' के आदर्श दृष्टिकोण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि मनुष्य विश्व-बंधु है, क्योंकि यह एकीकृत दृष्टिकोण उनकी विश्व की मान्यता का सीधा निष्कर्ष था। सभी बौद्धिक प्राणियों में निहित समान बुद्धि के आधार पर समानता है और वे स्वाभाविक रूप से सामान्य नियम से युक्त एक समाज की रचना करते हैं। उनका कथन है कि ज्यूस के इस नगर (विश्व) के सभी सदस्यों को अपने संविदाओं का पालन करना चाहिए, व एक-दूसरे का नुकसान नहीं करना चाहिए, परस्पर हानि से बचाने के लिए एकता से रहना चाहिए आदि। ये कथन स्पष्टतया स्वाभाविक नियम को अभिव्यक्त करते हैं। पुनः, यह भी आवश्यक माना गया कि मानव समाज के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसके सदस्य आपस में लैंगिक सम्बंध रखें, संतान उत्पन्न करे और संतान की शिक्षा-दीक्षा एवं पालन पोषण की चिंता करें, किंतु मानव स्वाभाविक काम प्रवृत्ति से ऊपर उठकर लैंगिक सम्बंधों के निर्धारित करने का कोई प्रयत्न नहीं करते हैं। इस प्रकार हम झेनो में भी प्लेटो के समान ही पत्नी-समुदाय की धारणा पाते हैं। जो कि झेनो के (काल्पनिक) आदर्श राष्ट्र मंडल की एक विशेषता थी। दूसरे स्टोइकभी उसकी इस मान्यता को स्वीकार करते रहे और परम्परागत लैंगिक नैतिकता के नियमों की रूढ़िवादिता और सापेक्षिकता की कटु एवं विरोधाभासपूर्ण आलोचना करते रहे। पुनः यह सम्प्रदाय कठोरतापूर्वक इस बात को भी मानता था कि सिवाय मनीषियों के शासन के कोई भी नियम सही या बंधनकारक नहीं है। मनीषी ही सच्चा शासक या राजा है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्टाइकों की प्रकृति भी रूसो की प्रकृति के समान ही क्रांतिकारी होने का खतरा उठाती है, तथापि व्यवहारिक रूप में उसका यह
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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