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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/72 दोषी है। इसी प्रकार प्रज्ञा की किसी एक अभिव्यक्ति में भी, जिसे सामान्यतया किसी विशेष सद्गुण के रूप में जाना जाता है, सम्पूर्ण प्रज्ञा सम्मिलित रहती है। स्टोइकी ने भी विशेष सद्गुणों के वर्गीकरण की अपनी योजना के आधार के लिए प्लेटो के चतुर्विध विभाजन को ही स्वीकार किया है। यद्यपि ये सद्गुण एक-दूसरे से भिन्न हैं या उनमें वही प्रज्ञा विभिन्न सम्बंधों में उपस्थित रहती है?इस सूक्ष्म प्रश्न पर वे सहमत नहीं होते हैं। स्टोइकवाद में संकल्प की स्वतंत्रता और निर्धारण क्या इस दुर्लभ और अमूल्य प्रज्ञा की उपलब्धि मनुष्य के लिए सम्भव है? अथवा क्या मानवीय कमजोरियां वस्तुतः अनैच्छिक हैं? बुराइयां अनैच्छिक हैं, इस सिद्धांत में नैतिक उत्तरदायित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा निहित है। बुराई की अनेच्छिकता का यह सिद्धांत सुकरात के ज्ञान और सद्गुण के तादात्म्य का स्वाभाविक निगमन प्रतीत होता है, इसीलिए जैसा कि हमने पूर्व में देखा था, अरस्तू ने भी इस सिद्धांत के निरसन के लिए प्रयत्न किया था और अपने इस प्रयास में उसने इस विरोधाभास को समाप्त करने में निहित गम्भीर कठिनाइयों को इंगित किया था। जहां तक यह मान लिया जाता है कि कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे ऐच्छिक उद्देश्य की उपलब्धि के विरोध में भी कार्य कर सकता है, जो कि उसे उचित प्रतीत होता है। अरस्तू का सुकरात से मतभेद भी उसे इस धारणा को अस्वीकार करने की दिशा में नहीं ले जा सका, जबकि स्टोइक के लिए, जो कि मूलभूत सुकरातीय स्थिति की ओर लौटे हैं यह कठिनाई और अधिक स्पष्ट हो गई है। वस्तुतः जो दार्शनिक यह मानता है कि सद्गुण ही ज्ञान है, उसे इस विरोधाभास के दो विकल्पों में से एक को चुनना होता है। उसे या तो यह मानना पड़ेगा कि बुराई अनैच्छिक है या यह मानना पड़ेगा कि अज्ञान ऐच्छिक है। इस उभयतोपाश का यह दूसरा पहलू नैतिकता की दृष्टि से किसी सीमा तक कम खतरनाक है और इसीलिए स्टोइक्स ने इसे चुना है, किंतु वे भी अपनी उलझनों से नहीं बच सके और इस प्रकार विचार के दूसरे ओर मानवीय संकल्प की सीमा की अति व्यापकता की ओर चले गए। उनके भौतिक विश्व के दृष्टिकोण में भी उतना ही कट्टर निर्धारणवाद आ जाता है। यदि किसी व्यक्ति की बुराइयां पूरी तरह पूर्व निर्धारित हैं, तो ऐसा पापी व्यक्ति कैसे उत्तरदायी होगा? स्टोइकों ने उसका उत्तर यह दिया है कि यह भ्रांति, जो कि दुराचरण का सार है, इस सीमा तक ऐच्छिक है कि यदि व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग करता तो उसे दूर किया जा सकता था। निःसंदेह यह
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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