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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 73 व्यक्ति आत्मा की आंतरिक शक्ति और दृढ़ता पर निर्भर है " कि उसकी बुद्धि का ऐसा प्रभावपूर्ण उपयोग किया जा सके, किंतु नैतिक उत्तरदायित्व का अनुरक्षण इस आधार पर माना गया कि अनुचित कार्य किसी अन्य बाह्य कारण से नहीं, वरन् व्यक्ति स्वयं ही प्रारम्भ होता है। स्टोइक प्रज्ञा और प्रकृति इस सबके आधार पर हमें स्टोइक प्रज्ञा के व्यावहारिक विधायक तथ्यों के निर्धारण का एक रास्ता प्राप्त हुआ है। हम उस निष्फल वृत्त से किस प्रकार ऊपर उठें कि (1) प्रज्ञा ही सम्पूर्ण अशुभ है और (2) प्रज्ञा शुभाशुभ या ज्ञान है ? हम शुभ आचरण के विभिन्न घटकों का निर्धारण करने के लिए कौनसी पद्धति अपना सकते हैं? स्टोइक वाद और सिनिकवाद - दोनों ही अपने सिद्धांतों को पूर्णता देने के लिए किसी ऐसी पद्धति की अपेक्षा करते हैं, क्योंकि दोनों ही सम्प्रदाय यह मानने को तैयार नहीं थे कि मनीषी जो कार्य करने का संकल्प लेते हैं, वह उतना निष्काम होता है, जितना कि जब किसी काम को आ पड़ने पर उदासीन भाव से किया जाता है। शर्त यह है कि वह उस निष्कामता की पूरी जानकारी रखकर कार्य करे, तथापि सिनिकों ने इस आवश्यकता के लिए कोई दार्शनिक प्रावधान नहीं किया है। वे सद्गुण का वही अर्थ समझकर संतुष्ट हैं, जो कि साधारण व्यक्ति समझता है, फिर भी उनका स्वतंत्रता का विचार उन्हें उपलब्ध पूर्वाग्रहों और नियमों के निरसन की ओर ले गया। दूसरी ओर स्टोइकों ने न केवल कर्तव्यों के विस्तृत विवरण के लिए ही कार्य किया, अपितु उन्हें एक सामान्य सिद्धांत के अंदर समन्वित करने के लिए भी विशेष प्रयत्न किया। जीवन के सभी अवसरों के लिए संयोग मिल जाते हैं और वे अनुकूल बन जाते हैं 32 । उन्होंने इसे किसी सामान्य सूत्र के आधार पर समझने का विशेष प्रयत्न किया था। उन्होंने यह कार्य प्रकृति के प्रत्यय के विधायक अर्थ के माध्यम से किया। सिनिको ने प्रमुखतया उन परम्पराओं के विरोध के रूप में, जिनसे वे अपने ज्ञान के द्वारा स्वतंत्र हुए थे इसका निषेधात्मक रूप में उपयोग किया। प्रकृति के प्रत्यय के इस निषेधात्मक उपयोग में भी यह बात निहित है कि मनुष्य में जो सृजनात्मक प्रवृत्तियां है, वे स्वाभाविक है, अर्थात् वे सामाजिक परम्पराओं और रूढ़ियों से स्वतंत्र और अदूषित हैं और अभिव्यक्त कार्यों में अपना सम्यक् प्रभाव डालती हैं, किंतु यह प्रतीत होता है कि बाल आचरण के लिए एक सामान्य सिद्धांत के रूप में प्रकृति के अनुरूप जीवन की स्वीकृति झेनो की अकादमी की शिक्षाओं के प्रभाव के
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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